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[ १] कल्याणक नहीं हो सकता है इसलिये राज्याभिषेक बिना पांच ही कल्याणकोंका पाठ श्रीदशाश्रुतस्कन्धसूत्रके अष्टम अध्ययन रूप श्रीकल्पसूत्र में श्रीभद्रबाहुस्वामीने कथन किया था सो दिखाया और श्रीआचारांगजी सूत्रके पाठसे श्रीमहावीरस्वामीके छ कल्याणको सम्बन्धी इसारा करके श्रीमहावीरस्वामीके गर्भापहारके छठे कल्याणककी तरह राज्यभिषेक छठा कल्याणक नहीं हो सकता है इसका भी खुलासा लिख दिया है इसलिये श्रीवीरप्रभुके छठे कल्याणकको निषेध करनेके लिये राज्याभिषेकका सहारा लेना सो भी निष्केवल हठवादसे सर्वथा अनुचित है।
और टीकाकारने इतना खुलासाके साथ व्याख्या करी होते भी शास्त्रकारके विरुद्धार्थ में पूर्वापरका पाठ छोड़कर अधूरे पाठसे न्यायांभोनिधिजीने अपनी कल्पनाका कदाग्रहमें भोले जीवोंको गेरनेके लिये जानबूझ कर प्रत्यक्षपने ऐसी मायाचारी करके वस्तुके बहाने श्रीआदिनाथ स्वामीके भी पांचों ही कल्याणकोंकों उठा दिये सो तो अन्तर मिथ्यात्वके सिवाय ऐसा उत्सूत्र भाषण कदापि नहीं हो सकता, इस बातको विशेष करके तत्वज्ञजन स्वयं विचार लेंगे। ____ और अब सत्य ग्रहणाभिलाषी पाठकगणसे मेरा येही कहना है कि न्यायांभोनिधिजीका ऐसा प्रत्यक्ष दिखाता हुआ इतना बड़ाभारी अन्यायपर मेरेको तो क्या-परन्तु हरेक श्रोजिनाज्ञा आराधनाभिलाषी सत्यनाही तत्वार्थों निष्पक्षपाती विवेकी पुरुषोंको महान् खेद उत्पन्न हुए बिना कदापि नहीं रहेगा क्योंकि देखो खास अपने ही परम पूज्य श्रीहीर विजय सूरिजीकृत श्रीजंबूद्वीप प्रज्ञप्तिकी वृत्ति तथा उपरोक्त पाठ वगैरह अनेक व्याख्याओं में प्रगटपने लिखा है कि प्रश्रम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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