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तथा छ कल्याणकोंकी व्याख्या सम्बन्धी श्रीकल्पसूत्रका 'पंच हत्थुत्तरे हुत्था साइणा परिनिव्वुए यह जघन्यपाठ सत्य होने. पर भी उसको भ्रांतिवाला कहना कदापि नहीं बन सकता है और शास्त्रानुसार छ कल्याणकोंकी सत्य बातको प्रमाण करने में किसी तरहका आग्रह भी नहीं कहा जा सकता, तथापि न्यायांभोनिधिको उपाधि धारक पीआत्मारामजीने छ कल्याणको सम्बन्धी उपरोक पाठको भ्रांतिवाला ठहराया तथा छ वस्त कहके वस्तुके बहाने छ कल्याणकोंका निषेध करने के लिये श्रीआचारांगजी तथा प्रोस्थानांगजी और श्रीकल्पसूत्रादिशास्त्रोंके पाठोंका कल्याणक अर्थको बदलाया और भ्रांतिवाला पाठ देखकर आब्रहके वस हुए होगे इत्यादि प्रत्यक्ष मायावृत्तिसे मिथ्या लिखा सो मिकेवल वीचारे भोले जीवोंको भ्रमानेके लिये वृथा ही गच्छकदाग्रहमें फंसकर अभिनिवेशिक मिथ्यात्वसे उत्सूत्र प्ररूपणा करके निमपरके संसार वृद्धिका कारण किया है सो तो तत्त्वज्ञ जन स्वयं विचार सकते हैं,___ और (ऐसाही भ्रांतिवाला ऋषभदेव स्वामीके विषय में भी पाठ है तो फिर ऋषभदेवस्वामीजीके छी कल्याणक न माने उसका क्या कारण है हम जानते हैं कि-वो पाठ आपके देखने में नहीं आया होगा) इस उपरके लेख में न्यायांभोनिधिजीने श्रीऋषभदेवजी सम्बन्धी श्रीजम्बूद्वीप प्रज्ञप्तिके पाठको भ्रांतिवाला ठहराया इसपर भी मेरेको इतना ही कहना है कि-जैसे पीलीयेके रोगी आदमीको सपेद वस्तुमें भी पीलेपनकी भांति होती है उसीसे बाल जीवोंको भी अपनी अज्ञानताकी भ्रांति, गैरनेका उद्यम करता है तैसे ही आप भी अपने पूर्व भवके पापोदयसे गच्छ ममत्वकी द्रव्य परम्परा करके सत्सूत्र प्ररूपमापूर्वक कुविकल्पोंके स्थापनका एठवाद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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