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बृद्धिका हेतुभूत मिथ्यात्व बढ़ानेवाला वथा ही परिश्रम क्यों किया होगा क्योंकि देखो जैसे किसी जगहपर जैन धर्मका प्रचार नहीं होवे उसी जगह जैनी साधुको अनेक तरहके कष्ट उठा करके भी जैन धर्मका प्रचार करना चाहिये सो भगवान् की आज्ञानुसार होमेसे निजपरके आत्म कल्याणका कारण है नतु आज्ञा प्रतिकूल ॥ तथा॥ किसी नगरमें जैन समुदायमें सुगुरुके अभावसे अज्ञानताके कारण कालांतरे शास्त्रानुसार बातोंका लुप्तभाव होकर शास्त्र विरुद्ध बातोंका अन्धपरम्परासे प्रवर्तन होगया हो तो वहां भी जाकर अनेक तरहकी तकलीफ उठाकरके भी शास्त्र विरुद्ध बातोंका प्रतिषेध पूर्वक शास्त्रानुसारकी लुप्त बातोंको प्रगट करना सो भी जिनामा मुजब होनेसे आत्म निर्मलताका तथा भव्य जीवोंके उपकारका कारण है
और शिथिलाचारी द्रव्यलिंगि इहलोकस्वार्थी साध्वाभास गच्छममत्वी दुराग्रही उत्सूत्रभाषकोने मुसाधुओंकी मिन्दा पूर्वक भगवान्की आज्ञाविरुद्ध कितनी ही बातोंमें अपनी कल्पनावाले मन्तव्य मुजब भोले जीवोंको अपने फन्दमें फंसाकर कितनीही सत्य बातोंका लुप्तभाव कर दिया होवे वहां कोई होमतवान् आत्मार्थी परउपकारी शुद्ध मुनि महाराज जाकर उपरकी बातोंका निवारण पूर्वक भगवान्को आज्ञा मुजब शास्त्रानुसार सत्य बातोंको प्रगट करे जिसको विवेकशून्य अन्तरमिथ्यात्वी दीर्घसंसारी झूठेपक्षके हठनाही पूर्णअज्ञानीके सिवाय, विवेकी तत्वज्ञ आत्मार्थी सत्यवाही तो नवीन बात प्रगट करनेके बहाने भोले जीवोंको मिथ्यास्वके भ्रममें गेरकरके सत्य बातकी अद्धारहित कदापि नहीं करेगा ॥ तैसे ही चित्रकूट (चीतोड) में साध्वाभास व्यलिंगी गच्छकदाग्रही चैत्यवासियोंने शास्त्र प्रमाण शून्य अपने मनु
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