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मोक्षको प्राप्त हुआ" ऐसा मतलबका पाठ आवे वहां यद्यपि साधु सुनका नामवाला शब्द कथन नहीं किया गया तो भी पांच महाव्रतोसे साधु तो स्वयं सिद्ध होही चुका तथापि कोई उपर में साधु शब्दका तो गन्ध भी नहीं है. ऐसा कह करके साधुका निषेध करे तो उसीको विवेक शून्य हठवादी अज्ञानी समझना चाहिये ॥ तैसेही श्रीआचारांगजीमें श्रीवीरप्रभु चरम तीर्थंकर भगवान्के च्यवन जन्मादिकों के मास पक्ष तिथि नक्षत्रोंका खुलासा पूर्वक चरित्रका वर्णन करने में आया है वहां च्यवनादिकोंको कल्याणकत्वपना तो स्वयं सिद्ध हो चुका और गर्भापहारसे गर्भ संक्रमणको तो आश्चर्यके कारणसे दूसरे च्यवनकी प्राप्ति होनेसे उसीको भी कल्याणकत्वपना तो स्वयं सिद्ध है तथापि आत्मारामजीने श्रीवीरप्रभुके मोक्ष गमन पयत सब चरित्रको ही कल्याणकों रहित ठहराया सो तो अज्ञानतासे या अभिनिवेशिक मिथ्यात्वसे भोले जीवों को भ्रमाकरके शास्त्रानुसारको सत्य बातपरसे श्रद्धा भ्रष्ट करने रूप मिथ्यात्व फैलाने के सिवाय और कुछ भी सार मालूम नहीं होता है इसको विशेषतासे तत्वज्ञजन स्वयं विचार लेवेंगे. तथा और भी सत्य ग्रहणाभिलाषी पाठकगण को यहां प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाता हूं कि देखो श्रीकल्पसूत्र में श्रीपार्श्वनाथजी तथा श्रीनेमिनाथजी और श्री आदिनाथजी भगवान्के चरित्र वर्णन करने में आये हैं वहां उन महाराजोंके च्यवनादिकोसे मोक्ष पयतके मास पक्ष तिथि नक्षत्रोंका खुलासा पूर्वक वर्णन किया है परन्तु वहां किसी जगहमी कल्यागाक शब्दका तो कथन सूत्रकारने नहीं किया है तो भी अनादि व्यवहारकी प्रसिद्ध बात मुजब उन्होंके च्यवनादिकोको कल्याणकपना प्रगटपने आपलोग सब कोई कहते हैं तैसेही इसीही
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