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महाराजों के दीक्षा और ज्ञान उत्पत्ति के मास पक्ष तिथि मक्षवादिकोंकी खुलासाके साथ व्याख्या करी है वहां भी सबी जगह कल्याणक शब्द नहीं लिखा है और प्रीत्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र में भी कितनेही पर्वो में (विभागोंमें) बहुत तीर्थकर महाराजोंके च्यवनादिकोंके नामों पूर्वक उन्होंके मास पक्ष तिथि नक्षत्रों का खुलासा लिखा है. परन्तु वहां सबी तीर्थ कर महाराजोंके चरित्रों में सबी जगह पर ध्यवन जन्मा. दिकों में कल्याणक शब्द नहीं लिखा है परन्तु अनादिका प्रसिद्ध व्यवहारानुसार उन च्यवनादिकोंको कल्याणक अर्थ पूर्वक कथन किये जाते हैं तथा औरभी मौन एकादशीके गुनणेके जापको नामावलीमें और श्रीतीर्थ कर महाराजके ५२॥५२ बोलोंके यन्त्रों में तथा पांच कल्याणकोंकी टीप, च्यवनादिकोंके नाम लिखे हैं वहां कल्याणक शब्दका नाम लिखे बिना भी उन्होंको कल्याणक कहनेका तो सब कोई प्रगटपने मान्य करते हैं तैसेही जो भगवान्की आज्ञाके आराधक आत्मार्थी विवेकी जन होगे सो तो श्रीस्था नांगजीमें १४ तीर्थ कर महाराजोंके च्यवनादि पांच पांचको कल्याणकपने मान्य करेंगे परन्तु अभिनिवेशिकमिथ्यात्वी दीर्घसंसारी होगे सो न मानेगें और कुयुक्तियोंसे भोले जीवोंको भ्रममें गेरेगें तो उन्होंकेही भारी कर्मों को दोष है नतु शास्त्रकारोंका इस बातको विवेकी जन स्वयं विचार लेवेगे;___ और श्रीस्थानांगजी सूत्रकी वृत्तिमें श्रीपद्मप्रभुजी आदि तीर्य कर महाराजोंके च्यवनादिकोंके मास पक्ष तिथि नक्षत्र तथा माता पिताके नाम और नगरीके नामको खुलासा पूर्वक व्याख्या करके टीकाकारने च्यवनादि पांच पांच स्थान को भर्यात व्यवनादि पांच पांच करपाणकोंको स्पान शब्दकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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