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[५८४] गया है जिसको पढ़नेवाले निस्पक्षपाती सजजन तो दोनों शब्द एकार्थवाले स्वयं समझ लेवेंगे:
और इसीके अनुसार उपरोक्त लेख मुजब हो श्री दशाश्रुत स्कंध सूत्रकी चूर्णिमें श्रीमहावीरस्वामीके च्यवनादि छ वस्तुओंका काल कथन किया अर्थात् च्यवन, गर्भहरण, जन्म, दीक्षा, जान, और मोक्ष. इन छ वस्तुओंके मास पक्षादि कालका कथन पूर्वक भगवान्का सम्पूर्ण चरित्रको कथन करनेका चूर्णि कारने कहा सो च्यवनादि छह कल्याण कों का अन्तर्गत अर्थ वाला वस्तुशब्द लिखनेका समझना चाहिये नतु कल्याणकोंके निषेधवाला वस्तु शब्द इसबातको उपरोक्त लेखके न्यायानुसार निष्पक्षपाती विवेकी पाठक गण स्वयं विचार लेवेंगे;__ और श्रीआचारांगजी सूत्र में 'पंच हत्थुत्तरे हुत्था साइणा परिनिव्वुडे' इसी तरह का पाठ कहकर इन्हीं छहों कल्यासकोंका खुलासा खास सूत्रकारनेही कर दिया है तथा टीकाकारने भी च्यवन गर्भहरण जन्मादि सबका खुलासा लिख दिया है तथापि (आचारांगमें 'पंच हत्थुत्तरे होत्था' ऐसा पाठ है ) इन सअक्षरोंसे सूत्रका अधूरा पाठ न्यायांभोनिधिजीने भोले जीवोंको दिखाकर अपने भ्रममें गेरनेका परिश्रम किया परन्तु श्री कल्पसूत्र मुजब ही खुलासा पाठ श्रीआचारांगजीमें भी होनेसे जो विवेकी आत्मार्थी जन होंगे सो तो इनकी मायाजालमें कदापि नहीं फसेंगे तथा और भी देखो 'पंच हत्थुत्तरे, इन अक्षरोंसे पांच कल्याणक तो हस्तोत्तरा नक्षत्र होमेका लिखा तथा टीकाकारके पाठसे निर्वाण स्वाति नक्षत्र में होनेका लिखा सो तो भगवान्का मोक्ष कल्याणक स्वाति नक्षत्र में दीवालीके नामसे प्रसिद्ध है इससे न्यायांभोनिधिजीके लेख मुजबही छ कल्याणक सिद्ध होते हैं तथापि उन्होंका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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