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पर्यायवाची एकार्थं सूचक स्थान शब्द लिखा है ऐसा समकना चाहिये अन्यथा स्थान कहके कल्याणकका निषेध करनेसे तो चौदह तीर्थकर महाराजके 90 कल्याणकोंका निष ेध होनेसे श्रीअनन्त तीर्थंकर गणधरादि महाराजोंकी आज्ञा उत्थापनरूप उत्सूत्र भाषण से मिथ्यात्वके दूषणको प्राप्ति होवेगी इसको विशेषतासे तो तत्वज्ञ जन स्वयं विचार लेवे गे और स्थान शब्द कल्याणकके अर्थ वाला है जिसका दृष्टान्त के साथ खुलासावाला लेख पहिले भी विनयविजयजी के लेखकी समीक्षा में इसी ग्रन्थ के पृष्ठ ५०१ से ५०२ तक छप गया उसीको पढ़ने से भी पाठकवर्गको सब निःसन्देह हो जायेंगा ;
अब श्रीजिनाजा आराधक सत्यग्रहणाभिलाषी सज्जन पुरुषोंसे इस अवसर पर मेरा यही कहना है कि श्रीस्थानांगजी सूत्र तथा उसीकी वत्ति सम्बन्धी उपरोक्त लेखके न्यायानुसार श्रीपद्मप्रभुजी आदि १४ तीर्थंकर महाराजके 90 कल्याणक सिद्ध हो गये जिसमें श्रीपार्श्वनाथजी पर्यंत १३ तीर्थंकर महाराजोंके च्यवन जन्म दीक्षा ज्ञान और मोक्ष इन पांच पांच कल्याणकों के हिसाब से (श्रीस्थानांगजी सूत्रके मूल पाठसे तथा उसीकी टीकाके पाठ से ) ६५ कल्याणक हुए और चौदहवें श्रीमहावीरप्रभुके पांच कल्याणकोंमेंसे तो प्रथम च्यवन तथा गर्भहरण से गर्भसंक्रमणरूपी दूसरा च्यवन और तीसरा जन्म चौथा दीक्षा पांचवां केवलज्ञानोत्पत्ति यह पांच कल्याणक गिनने से चौदह तीर्थ कर महाराजोंके सत्तर (90) कल्याणक होते हैं इसमेंसे श्रीजिनाज्ञा आराधक आत्मार्थी भवभीरु जो जैनी होगा सो तो एकही कल्याणक निषेध नहीं कर सकेगा परन्तु आज्ञाविराधक दीर्घसंसारी जैनभास तो 90 ही कल्याणकोंको निषेध करके सूत्र पाठके अर्थका भङ्गकर देवे
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