________________
[ ५१२]
कवर्गको दिखाता हू कि देखो अधिक मासके ३० दिनोंकी गिनती निषेध करनेका तथा श्रीवीरप्रभुके छठे कल्याणकको निषेध करनेका प्रत्यक्ष कुत्रियोंसे अन्यायकारक और उत्सूत्र प्ररूपणा के कदाग्रहको निवारण करके श्रीतीर्थंकर गणधरादि महाराओं के कथनानुसार पंचांगीके प्रमाणों मुजब और सुयुक्तियों सहित अधिक मासके ३० दिनोंको गिनती में लेने के तथा श्री वीरप्रभुके छठे कल्याणकको सिद्ध करके दिखाने के लिये श्रीजिनाज्ञाराधक आत्मार्थी परोपकारी और दीक्षा पर्याय में स्थिविर अनेक गीतार्थ समर्थ पुरुष पहिले हो गये तथा बर्तमान में भी होगें परंतु " श्रीपर्युषणा निर्णय" नामान्रन्थ में उपर की बातोंका विस्तारसे शंका समाधान पूर्वक निर्णय होनेका ६७ वर्षके नवदीक्षित बालक तथा अल्प बुद्धिवाले मेरेसेही योग्य था सो हुआ और भव्यजीवोंके उपकारार्थे प्रगट करनेका भी अवसर आया तो क्या मेरे जैसे तथा मेरेसे विशेष विद्वान् पूर्वे कोई नहीं हुए तथा बर्तमान में कोई नहीं सो मेरेको उपरका कार्य करना पड़ा सो तो कदापि नहीं क्योंकि पंच समवायके योग्यसे जो कार्य जिससे होनेवाला होता है सो कार्य उसीसे होगा नतु दूसरेसे ॥ बस इसीकेही अनुसार चीतोड़ में चैत्यवासियोंके कदाग्रहको हटाकरके पूर्वोक्त लुप्त बातोंको श्री जिनवल्लभ सूरिजी से ही प्रगट होनेका योग्य था सो हुआ इसलिये दूसरे पूर्वाचार्य षष्ठ कल्याणकादि बातोंको वहां उस समय प्रगट म कर सके तो फिर श्रीजिनवल्लभ सूरिजीने कैसे किया ऐसा सन्देह करनाही उचित नहीं है यदि ऐसा सन्देह हो गया हो तो उपरके लेखको पढ़कर निकाल देना चाहिये इस बातको विशेषता सत्यग्रहणाभिलाषी पाठकगण स्वयं विचार लेवेंगे
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com