________________
[५० ]
कथन किये हुए बीवीरप्रभुके छ कल्याणकको दिलानेवाले उपरोक्त शास्त्र पाठको बिना प्रयोजनके ठहराकर अपने कल्पित कदावहमें भोले जीवोंको गेरनेके लिये महान् अनर्थ किया ॥ हा हा अंतिं खेदः ॥ श्रीतीर्थ कर गणधरादि महाराजके कथन किये हुए शास्त्रोंके पार्टीकी बिना प्रयोजनके ठहरानेका महान् अनर्थ करते समय आत्मारामजीके विद्वताकी विवेक बुद्धि किस प्रदेशके कौमें घुस गई होगी सो जरा सा भी विचार न किया और वर्तमानमें भी उन्होंके समुदायवाले तथा उन्होंके पक्षपाती जन विद्वान् कहलानेवाले होकरके भी आत्मारामजी के ऐसे अनर्थ को पुष्ट करके उत्सूत्र भाषणोंसे कुयुक्तियोंके विकल्पों को आगे करते हुए मिथ्यात्व बढ़ानेवाले कार्यमें पक्षपातसे आग्रह करते हैं सो भी वर्तमानिक मंडलको जाका कारण है और श्रीतीर्थंकर गणधरादि महाराजोंके कथन किये हुए ( श्री आचाराङ्गजी श्रीस्थानांगजी श्रीकल्पतूवादि) शास्त्रों के पाठों में श्रीवीरप्रभुके छ कल्याणकों को प्रगटपने कंथन किये हैं सो उन्हीं शास्त्रोंके पाठोंको लिखके सत्यग्रहलाभिलाषी भव्यजीवको शास्त्र प्रभाणानुसार श्रीवीरप्रभुके
कल्याणकों को दिखांना तो शास्त्रोंके पाठ आत्मारामजीके कहनेसे बिना प्रयोजनके ठहर सकेंगे सो तो कदापि नहीं परन्तु भीतीर्थंकर गलधरादि महाराजोंके कथनका उत्थापन रूपी शास्त्रोंके पाठको अवज्ञासे महान् उत्सूत्र भाषणके विपाक तो अवश्यमेव अनुभवनेही पड़ेंगे इस बातको निष्पक्षपाती विवेकी तत्वज्ञ पाठक जन स्वयं विचार लेवेंगे
और “किसीभी आचार्यने श्रीमहावीरस्वामीके षट् कल्याबक ऐसाकथन नहीं किया है" यह लेख भी आत्मारामजीका बंधने विधेयको लज्जानेवाला तथा विद्वत्ताकी हँसी कराने
www.umaragyanbhandar.com
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat