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सिद्धान्त समाचारी' नामक पुस्तकमें श्रीमहावीरस्वामीके छ कल्याणक निषेध सम्बन्धी मिथ्यात्व फैलाया है जिसकी भी (भव्यजीवोंका संशयके अन्तरभ्रमको दूर करनेका उपकारके लिये विनय विजयजीके लेखकी समीक्षाके अनन्तर) यहां समीक्षा करके पाठकगणको दिखाता हूं-सो दूष्टिरागका पक्षपातको छोड़करके मध्यस्थ वृत्तिसे मेरी समीक्षाको बांचकर असत्यका त्याग और सत्यका ब्रहण करना चाहिये जिसमें प्रथम तो आत्मारामजीने अपनी बनाई “जैन सिद्धान्त समाचारी" के पृष्ठ ६६ की पंक्ति १७ वीसे पंक्ति २९ वीं तक ऐसे लिखा है कि (पृष्ठ ७० से लेकर पृष्ठ ६० तक बिनाही प्रयोजन पाठ लिखके ग्रन्थ भारी किया है क्योंकि षट्कल्याणक ऐसा वचन तुमारे गच्छसेही प्रगट हुवा है परन्तु और किसी भी आचार्यने श्रीमहावीरस्वामीजीके षट्कल्याणक ऐसा कथन नहीं किया है ) __अपरके लेखकी समीक्षाकरके सत्यवाही सज्जन पुरुषोंको दिखाता हूं, कि ऊपरके लेखको देखकर मेरेको बड़े ही खेदके साथ लिखना पड़ता है कि आत्मारामजी सुप्रसिद्ध इतने विद्वान् और न्यायांभोनिधिकी उपाधिको धारण करनेवाले हो करके भी अपने दुराग्रहको स्थापन करनेके लिये प्रीतीर्थडर गण धरादि महाराजोंके कथन किये हुए शास्त्रोंके पाठोंको बिना प्रयोजनके ठहराते महान् उत्सूत्रसे संसार इद्धिका कुछ भी विचार नहीं किया मालूम होता है क्योंकि रायबहादुर मायसिंह मेघराज कोठारीकी तरफसे जो "शुद्ध समाचारी प्रकाश" नामा पुस्तक प्रगट हुई थी जिसके पृष्ठ ७० से २० तक श्रीमहावीर स्वामीके छ कल्याणकोंको सिद्ध करने सम्बन्धी लेख छपा है उसीने विद्यमान तीर्थकर महाराज श्रीसीमन्धरस्वामीजीका
कपन किया हुआ भीमाचाशांगनी सूत्रके दूसरे प्रत स्कायके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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