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मिटानेके लिये निजपरके कल्याणाथ इन्द्रने भगवान्को उत्तम कुल में पधराये सो गर्भापहारको कल्याणकत्वपना निषेध करने के लिये नीच गोत्रका विपाक तथा आश्चर्य और वस्तुका बहाना लेकरके कल्याणकत्वपमेसे निषेध करने सम्बन्धी परिश्रम करना सो गच्छममत्वरूपी अन्तर मिथ्याrant बाललीला के सिवाय और क्या होगा सो तत्वज्ञ सज्जन तो स्वयं विचार लेवेंगे
और जिन च्यवन गर्भहरणादि छहाँको वस्तु ठहराकरके कल्याणकपनेका निषेध करते हैं तो फिर उन्हीं च्यवनको कल्याकपना और गर्भापहारको नहीं यह तो प्रत्यक्षही बाललीला दिखती है और जब उन च्यवन गर्भहरणादि छहोंको वस्तु ठहरा दी तो फिर उन्हीं छ वस्तुओंके पांच कल्याणक कहना सो भी कदापि नहीं बन सकता क्योंकि च्यवन गर्भहरणादि छ वस्तु सोही छ कल्याणक है इसका निर्णय पृष्ठ ४९१ से ५०१ तक छप गया है और प्रत्यक्षही सिद्ध है इस लिये छ कह करके फिर भी नक्षत्र सामान्यताका बहाना से छ के पांच बनाना यह भी बाललीलाही प्रतित होती है और नक्षत्र सामान्यता कहकरके फिर उसीको ही अति निन्दनीक भी कहना सोतो विशेष बाललीला है और नक्षत्र : सामान्यता तथा अतिनिन्दनीक कहकरके फिर उसीको ही असङ्गति निवारणका कहना सोतो अतीवही ग्रही लत्वपनेकी बाललीलाके सिवाय और कुछ भी नहीं क्योंकि अभिनिवेशिक मिथ्यात्व युक्त बाल प्रलापवत् उपर की बातें एक एकसे विरुद्ध पूर्वापर बाधक होने से तत्वग्राही विवेकीजन तो कदापि अङ्गीकार नहीं करेगा और उपरकी बातों में शास्त्रोंके विरुद्ध प्रत्यक्ष उत्सूत्र भाषणोंके कुयुक्यिोंके विकल्पोंके लेखको समीक्षा तो उपर मेंहीं विस्तार पूर्वक छप गई है सो पढ़ने से सब निर्णय हो जावेगा -
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