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निश्चय करके अरिहंतादिकोका क्षुद्रादिकुलॉमें जन्मतो हुआ नहीं होगानहीं और होताभी नहीं क्योंकि पहिले होगये, आगे होवेगे और वर्तमानमें है उन सब इन्द्रोंका यह आचाररूप धर्म है, कि अरिहंतादि अशुभकर्मयोगसे क्षु दादिकुलोमें आकर उत्पन्न होवे उन्होंको उग्रादि उत्तमकुलोंमें स्थापन करावे इसलिये सौधर्म इन्द्रने विचारा कि मैंरेकोभी प्रमण भगवंत, श्री महावीर स्वामीको ब्राह्मण कुलसे देवानंदाके उदरसे क्षत्रिय कुलमें त्रिशलाकेउदरमें स्थापन कराना सोकल्याणकारी निश्चय करके योग्यही है इसतरहका विचारके अपना आज्ञाकारी हरिणैगमेषिदेवको बुलाकर, उपर मुजब कहकरके समझाया और श्रीवीरप्रभुको ब्राह्मणकुलस क्षत्रियकुलमें पधराये ___ अब इस जगह आत्मार्थी विवेकी पुरुषोंको पक्षपात रहित होकरके न्याय दृष्टि से विचार करना चाहिये कि, सूत्रकार महा. राजकै कथनानुसार खास आप विनयविजयजीने ही श्रीवीर प्रभु ब्राह्मण कुलमें आषाढ़ शुदी ६ को देवानंदा माताके उदरने उत्पन्न हुए उसीकोही नीचगौत्रका विपाक और आश्चर्य कहा तथा उसीकोही च्यवन कल्याणक भाप भी मानते हैं और नीच गौत्रका विपाक तथा आश्चर्य यह दोनों जपरके विशेषण भी ब्राह्मण कुल में भगवान्के उत्पन्न होनेको ?लगते हैं इसलिये ब्राह्मण कुलसे क्षत्रिय कुलमें सिद्धार्थ राजाके यहाँ भगवान् गये उसीसे गर्भापहार रूप दूसरे च्यवन कल्याणकको विनय विजयजीने ऊपरके विशेषण लगाके कल्याणकत्वपमेसे निषेध किया सो कदापि नहीं हो सकता है क्योंकि यद्यपि कारण कार्य भावसे ऊपरके विशेषण ब्राह्मण कुलमें उत्पन्न होनेरूप देवलोकसे आनेके प्रथम च्यवन कल्याणकको तथा उत्तम कुलमें प्रवेश करने रूप गर्भापहारके दूसरे च्यवन कल्याणकको भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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