________________
[४]
श्रीवीरप्रभुके चरित्राधिकारे तो गर्भापहारके बिना किसी भी शास्त्रमें पाठ नहीं है इसलिये इनको तो कल्याणक मानना सो शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वक प्रत्यक्षपने सिद्ध है और गर्भापहारके सहित सब शास्त्रों में समान पाठ होनेसे उपर्युक्त व्याकरणका नियम गर्भापहार सम्बन्धी लग सकता है नतु राज्याभिषेक सम्बन्धी इस बातको निष्पक्षपाती विवेकी सज्जन स्वयं विचार लेवेंगे, -
और श्रीसमवायांगजी सूत्रवृत्ति में देवानन्दामाताके उदर में भगवान्का उत्पन्न होना सो पञ्चमभव और वहांसे ८३ वें दिन हरियो ग मैषिदेवने त्रिशलामाता के उदर में पधराये सो छठा भव गिना है इसलिये यहां शास्त्रकार महाराजने अलग अलग भव गिनलिये जिससे किसी प्रकारका सन्देहही नहीं रह सकता है और श्रीकल्पसूत्र में भी 'पचहत्थु त्तरे' कह करके देवानन्दामाताके उदरसे त्रिशलामाताके उदर में पधारने रूप गर्भापहारसे गर्भसंक्रमणको खुलासासे उत्कृष्ट वाचमा पूर्वक व्याख्या खास सूत्रकार महाराजमेही कर दी है इसलिये इस बातमें सन्देह नहीं हो सकता है तो फिर उसीका, याने असङ्गति रूप सन्देहका निवारण करने सम्बन्धी 'पचहत्य तरे' शब्दको कथन करनेका सूत्रकारको कैसे कह सकते हैं अपितु कदापि नहीं इसलिये असङ्गति निवारणका बहाना करना सो गच्छममत्व से मायाचारीकरके वृथाही भोलेजीवोंको भ्रमानेसे कर्मबन्धके तथा संसार वृद्धिके सिवाय और कुछ भी सारनहीं है इस ऊपरकी बातको विशेष करके पाठकगण स्वयं विचार लेवेंगे.
और जैसे श्रीआदिनाथ स्वामी के चरित्रको मादिमें कल्याणकाधिकारे “चल उत्तरासाढ़ अभीइपंच मे” ऐसापाठ श्रीभद्रबाहु स्वामी ने श्री कल्पसूत्र में खुलासा पूर्वक कह के राज्याभिषेकको कल्या
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com