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पहार सहित सर्व जगह छ कल्याणकोंका पाठ विद्यमान होते भी उसीका निषेध हो सकेगा सो तो कदापि नहीं इस बातका विशेष निर्णय इसीही ग्रन्थके पृष्ट ४७५ से ४८४ तक छप गया है सो पढ़नेसे सब निर्णय हो जावेगा
और अब पाठकवर्गसे मेरा यही कहना है कि सूत्रकार महाराज जो सूत्रपाठकी रचना करते हैं उसी सम्बन्धी सामान्य विशेषताका तथा उत्सर्ग अपवादका और अल्प बहुत की तथा नयोंकी अपेक्षा वगैरहसबका खुलासा तो शंका समाधान पूर्वक उसीकी व्याख्या में टीकाकार करते हैं नतु मूल सूत्रकार जैसे श्रीकल्पसूत्रमें चौदह स्वप्नाधिकारे श्रीवीरप्रभुकी माताने प्रथम स्वप्न हस्तीको देखा ऐसा सूत्रकारने कथन किया सो उसीकी व्याख्या करते सबी टीकाकारों ने “बहुत तीर्थंकर महाराजाओंकी माताने प्रथम स्वप्न हस्ती देखा उसीसे बहुत अपेक्षा सम्बन्धी सामान्यतासे व्यवहारिकपाठको वीरप्रभुको माता सम्बन्धी भी सूत्रकार महाराजने कहा परन्तु विशेषमें तो श्रीवीरप्रभुकी माताने प्रथम स्वप्न सिंहको देखा था" इस तरहका खुलासापूर्वक लिखके निर्णय किया है तैसे ही यदि 'चउ हत्थुत्तरे का सूत्रकार कथन करके भगवान्के देवानन्दा माताके उदर में उत्पन्न होनेका और जन्म त्रिशला माताके उदरसे होने का कह देते और गर्भापहार सम्बन्धी किसी जगह भी किसी प्रकारका कथन नहीं करते तब तो विनयविजयजीके कथन मुजब शङ्का रूपी असङ्गतिके होनेकीभ्रांति लोगोंको पड़नेकाकारण होजाता उसीका निवारण करनेकी टीकाकरोंको खास आवश्यकता होती सो अवश्यमेव करना पड़ता परन्तु गर्भापहार सम्बन्धी तो खास सूत्रकारनेही विस्तारसे कथन कर दिया है इस लिये इस बातमें
असङ्गतिकपी सन्देहका होनाही नहीं बन सकता तो फिर उShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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