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न्के च्यवन, तथा गर्भापहार रूप दूसरा च्यवन, मध्यजीवों के उपकार करनेवाले होनेसे उनको अति उत्तम कल्याणिक कहते हैं, अर्थात् जैसे- देवसम्बन्धी शरीरको अपेक्षासे सात धातुओंकी अशुचियुक्त मनुष्यका शरीर जो माताका उदर उसीमें गर्भावासपने ऊंघे मस्तक उत्पन्न होना सो व्यवहार में अच्छा नहीं कहें तो भी भगवान् का माताके उदर में उत्पन्न होना सो भव्यजीवोंके उपकारका कारण होनेसे देवलोक के शरीर को छोड़ कर के वहांसे च्यवनेको कारण भावसे च्यवन कल्याणक कहते हैं सो माताके उदर में उत्पन्न होनेसे भव्यजीवोंका उपकार रूप कार्य होता है तैसेही गर्भसे गर्भस्थानांतरे होना सो व्यवहारिक में अच्छा नहीं कहा जा सकता तथापि भगवान्का त्रिशलामाताके उदर में आना सो भव्यजीवों के उपकारका कारण होनेसे देवानन्दामाताकी कुक्षिसे गर्भहरण रूप गर्भापहारको कारण भावसे दूसरा च्यवन कल्याणक कहते हैं उसीसे त्रिशलामाताके उदरमें पधारनेसे भव्यजीवोंके उपकार रूप कार्य हुआ तथा नीच गौत्रत्व पना मिटा इसलिये कारण कार्य भावको तथा अपेक्षाको और लाभालाभको गुरु गम्यसे समझे बिना गर्भापहारको निन्दा करके कल्याणकत्वपनेसे निषेध करनेके लिये उत्सूत्रभाषण करके श्रीजिनाज्ञाके अनुसार सत्य बातकी शुद्ध श्रद्धा से भोले जीवोंको भ्रम में गेरने रूप मिथ्यात्व बढ़ानेसे दुर्लभबोधिका और संसार बृद्धिका हेतु है सो आत्मार्थियों को करना उचित नहीं है ।
और देवानन्द माताकी कुक्षिसे निकलने रूप गर्भापहारको तथा त्रिशला माता के उदरमें प्रवेश करने रूप गर्भ संक्रमणको अतिनिन्दनीक विनय विजयजी तथा अन्धपरंपरावाले वर्तमान में जो लोग कहते हैं सो ऐसा कहने वालोंकी पूर्ण अज्ञानता है क्योंकि जो उपरकी बातको निन्दनीक ठहराओंगे तब
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