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तरहका पाठ है तथा श्री नेमिनाथजीके चरित्राधिकारे भी “तेण कालेण ते समएवं अरहा अरिटुमेमी पंचचित्ते हुत्था" इस तरहका खुलासा पूर्वक पाठ है तैसेही श्रीमहावीरस्वामी के चरित्राधिकारे भी “तेणं काले तेण समएणं सम भगवं महावीरे - पंचहत्थुत्तरे हुत्था" इसीही तरहका पाठ है सो अब इस जगह विवेकी पाठकगणको विचार करना चाहिये कि श्री वीरप्रभु श्रीपार्श्व प्रभु और नेमिप्रभुके चरित्रकी आदिमेंही तीर्थंकर भगवान् के कल्याणकाधिकारे जधन्य वाचना सम्बन्धीउपरकापाठ चौदहपूर्वधर श्रुतकेवलि श्रीभद्रवाहुस्खामीने श्री कल्पसूत्र में कहा है और इनही पाठोंकी उत्कृष्ट वाचना पूर्वक खुलासा व्याख्या खास सूत्रकार महाराजमेही करी है सो श्री पार्श्वप्रभुके पांच कल्याणक विशाखा नक्षत्र में तथा श्रीनेमिप्रभुके पांच कल्याणक चित्रा नक्षत्र में हुए इस तरहका अर्थ विनयविजयजी तथा वर्त्तमानिक सब कोई तपगच्छवाले खुलासा पूर्वक करते हैं तैसेही प्रोवीरप्रभुके भी पांचकल्याणक हस्तोत्तरा नक्षत्र में हुए ऐसा अर्थ सूत्रकार महाराजके अभिप्राय मुजबही तपगच्छवालोंको करना चाहिये क्योंकि एकही सूत्रमें एकही सम्बन्ध वाले एकही समान पाठोंका एकही शास्त्रकार महाराजने कथन किये हैं उसीसे एकही तरहके अर्थ के सिवाय दो तरहके अर्थ कदापि नहीं हो सकने हैं तथापि विनयविजयजीने असङ्गति निवारणके बहाने श्रीवीरप्रभुके चरित्राधिकारे “पंच हत्थुत्तरे' पाठका अर्थ बदलाया सो प्रत्यक्षपने सूत्र पाठके अर्थ की चोरी करी हैक्योंकि 'पंच हत्थुत्तरे' पाठका च्यार कल्याणक हस्तोत्तरा नक्षत्र में ऐसा अर्थ करके गर्भापहारके कल्याणकको अकल्याणक ठहराके उड़ा देनेका इतना महान् अनर्थ कदापि काले नहीं
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