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खक होते तो सबीतीथंकर महाराजोंकी तरहही श्रीवीरप्रभुका भी पांचवेमें मोक्ष होनेका श्रीगणधर महाराजको कथन करना योग्य था सो तो किया नहीं और गर्भापहारको कथन करके पांचवे में केवल ज्ञानकी उत्पत्ति कहकर छठा मोक्ष गमनका कथन करना छोड़ दिया तो क्या मोक्ष छोड़ने सम्बन्धी सूत्रकारको असङ्गति करने का कहा जा सकेगा सो तो कदापि नहीं क्योंकि जिस बातका प्रकरण चलता होवे उसीके अनुसार अपेक्षा सम्बन्धी सूत्रकार व्याख्या करते हैं सो यहां श्रीस्थानाङ्गजी सूत्रके पांचवे स्थानकमें एक समान पांच पांच बातोंका प्रकरण होनेसे जिन जिन तीर्थंकर महाराजो के उसी एक नक्षत्र में पांच पांच कल्याणक हुए थे उन उन महाराजो के पांच पांच कल्यागाक यहां दिखाये गये जिसमें श्रीआदिनाथस्वामी आदितीर्थंकर महाराजो के केवलज्ञान पर्यन्त च्यार कल्याणक एक नक्षत्रमें और पांचवा मोक्ष गमन दूसरा नक्षत्र में इस तरहसे दो नक्षत्रों में पांच पांच कल्याणक जिन जिन तीर्थंकर महाराजोंके हुए थे उन उन तीर्थंकर महाराजो के पांच पांच कल्याणकोंकी व्याख्या तो श्रीस्थानाङ्गजी सूत्रके पञ्चम स्थानमें श्रीगणधर महाराज नहीं करसके तैसेही जो नीवीरप्रभुके भी च्यार कल्याणक हस्तोत्तरा नक्षत्र में और पांचवा मोक्ष स्वाति नक्षत्रमें इस तरहसे पांचही कल्याणक होते तो श्रीआदिनाथ स्वामीकी तरह श्रीवीरप्रभुके भी पांच कल्याणकोंकी व्याख्या यहां श्रीस्थानांगजी सूत्रमें श्रीगणधर महाराज कदापि नहीं करते परन्तु श्रीवीरप्रभुके तो केवल ज्ञानपर्यन्त पांच कल्याणक उसी एक हस्तोतरा नक्षत्र हुए और छठा मोक्ष स्वाति नक्षत्रमें हुआ इसलिये छठे मोक्ष कल्याणकको भी यहां कथन नहीं करसके परन्तु केवलं ज्ञान पर्यन्त पांच कल्याणक कथन कर दिये Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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