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[ ४] जो पाठ है सो असङ्गति निवारण के लिये नहीं किन्तु हस्ती. त्तरा नक्षत्रमें पांचों कल्याणकोंको प्रगटपने दिखाने वाला है क्योंकि आषाढ़ शुदी६ के हस्तोत्तरा नक्षत्र में देवानन्दामाताके उदर में भगवान्के अवतार लेने रूप प्रथम च्यवन कल्याणकमें चौदह स्वप्न तथा पुत्र उत्पत्ति, वगैरहकी व्याख्याकी तरह ही आश्विन बदी १३ के हस्तोत्तरा नक्षत्र में त्रिशलामाताके उदरमें अवतार लेने रूप दूसरा च्यवन कल्याणकमें भी चौदह स्वप्न तथा पुत्र उत्पत्ति वगैरहकी विशेष विस्तारार्थ पूर्वक खुलासा व्याख्या लिखी है सो प्रसिद्ध है तथा हरवर्षे श्री पर्युषणा पर्वमें वंचाती भी है इसलिये विनयविजयजीने असङ्गति निवा
के बहानेसे दूसरा च्यवन कल्याणकका निषेध किया सो अज्ञानतासे या अभिनिवेशिक मिथ्यात्वसे उत्सूत्रभाषण करनेके सिवाय और क्या कहा जावे क्योंकि श्रीवीर प्रभुके दो च्यवन कल्याणिक सिद्ध हो गये और जन्म, दीक्षा, केवल, तथा मोक्ष, यह चार कल्याणक तो स्वयं सिद्ध होनेसे श्रीवीर प्रभुके छ कल्या णक अनेक शास्त्रानुसार प्रगटपने दिखते हैं सो विवेकी तत्वज्ञ पुरुष स्वयं विचार लेवेंगे,
और दूसरा यह है कि त्रिशलामाताके उदरमें भगवान्के अवतार लेनेरूप दूसरे च्यवन कल्याणकको नहीं मान्यकरके असङ्गति निवारण के बहाने उसीको कल्याणकत्वपनेसे निषेध करनेसे तो विनविजयजीकी तथा वर्तमानिक गच्छममत्वियोंकी कल्पना मुजब गर्भापहाररूप दूसरे च्यवन कल्याणकके मास पक्ष तिथि नक्षत्रका तथा चौदह स्वप्नोंको त्रिशलामाताके देखनेका और सिद्धार्थ राजाने तथा स्वप्न पाठकोने नव महिने पुत्र उत्पत्ति सम्बन्धी चौदह स्वप्नोंके फल कहनेका इत्यादि बातोंका जो शास्त्रकार महाराजों ने विस्तारसे वर्णन किया
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