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तो माताको कुक्षिसे निकलने रूप जन्मको तथा देवलोकसे व्यव करके माताकी कुक्षिमें प्रवेश करने ( उत्पन्न होने ) रूप च्यवनको भी तुम्हारे कहनेसे तो निन्दनीक पना प्राप्त हो जावेगा और निन्दनिकपनेको आप लोग कल्याणक मानोगे नहीं तब तो च्यवन, गर्भापहार, और जन्म, यह तीनों कल्याणक आप लोगोंके अमान्य ठहरनेसे तुम्हारी कल्पना मुजब तो श्रीमहावीरस्वामीके तीनही कल्याणक रह जावेगे सो तो कदापि नहीं बन सकता इसलिये संसारके व्यवहारिक स्वरूपको तथा कारण कार्य भावको और लाभालाभको जाने बिना भगवान्के छठे कल्याणकके निषेध करनेके झगड़ेसे भगवान्के गर्भापहार की निन्दा करना सो अनन्तभव भ्रमणके हेतुको तथा मिथ्यात्वको छोड़ कर शास्त्रानुसार छहों कल्याणकों को माननेकी शुद्ध अद्धामें तत्पर होकर आत्म कल्याणके कार्यमें उद्यम करना चाहिये जिसमें सार है नतु निषेधके मिथ्यात्वमें आगे इच्छा आपकी ___ और च्यवनादि पांचों कल्याणकोंकी तरह श्रीवीरप्रभुके छठे कल्याणकमें भी सब जीवोंको मुख तथा तीन जगतमें उद्योत और नमुत्थुणं न होने की भ्रांतिसे उसीको कल्याणक मानने में शंका करने वालों की अज्ञानताको दूर करने के लिये भी इसका निर्णय आगे लिखने में आवेगा,
और भी यहां विचारने योग्य एक बात है, कि अपने भगवान्को लोक विरुद्ध निन्दाको कोई भी बात होवे लो उसीको उनके भजन, जाम-बुझकर कदापि प्रगट नहीं कर सकते किन्तु अवश्यमेव गुप्तपने रक्खेंगे परन्तु श्रीवीरप्रभुके गापहारको तो अनेक शास्त्रों में विस्तार पूर्वक तथा कारण कार्यभाव रहित वर्शन करने में आया है और विशेष श्रीवर
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