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गर्भापहारको अतिनिन्दनीक तथा अकल्याणकारी कहके श्री वीरप्रभुकी आशातना तथा भव्यजीवोंके आत्म साधन विघ्न करेगें और करानेका कारण करेगें जिन्होंकी आत्माका कल्याण होना बहुत ही मुश्किल है इस बातको विवेकी तत्त्वज्ञ पाठक गण स्वयं विचार लेवेंगे,
और अब गर्भापहारको अतिनिन्दनीक कहके श्रीवीर प्रभुको आशातनासे तथा भोले जीवोंको गच्छकदाग्रहका मिथ्यात्वके भ्रममें गेरने के लिये उत्सूत्र भाषणसे संसारमें परिभ्रमणका हेतु करनेवालोंकी अज्ञानताको दूर करनेके उपकारके लिये तथा भोले जीवोंक मिथ्यात्व रूपी भ्रमको दूर करके सम्यकत्व रूपी रत्नकी प्राप्तिका उपकारके लिये गर्भापहारको अति उत्तमतापूर्वक कल्याणकत्वपना सिद्ध करनेवाला एक दृष्टान्तकी युक्तिके अमत रूपी औषधको यहां दिखाता हूं जिससे कदाहियों के अन्तर मिथ्यात्व रूप अन्धकारके रोगको शांति होनेसे सम्यग्ज्ञानका स्वयं प्रकाश होजावेगा, सो देखोजैसे-गर्भावासका निवास तथा जन्म, जरा, रोग, शोक, आधि, व्याधि, उपाधि, संयोग, वियोग, मृत्यु आदि दुःखोंसे व्याप्त, तथा अशुचि दुर्गन्धमय सात धातुओंसे मिलित मनुष्यका शरीर सो देवताओं के शरीरसे अनन्तगुणाहीण होतेभी उसी में धर्मसाधनका तथा मोक्षगमनका कारण होनेसे उसीको उत्तम कहा, तथा रोगरहित अनन्तशक्तिवाला अनन्तस्वरूपकी कांतिवाला अनन्तसुखवाला नववेक निवासी देवताके शरीरको भी दीर्घ संसारी मिथ्यात्वीके लिये बुरा कहा और छेदन भेदन ताडण मारण रोग शोकादि अनन्त दुखोंवाला अतीव दुर्गन्धमय सातवीं नरक वासीके शरीरको भी सम्य. क्त्वधारी अल्प संसारीवालेके लिये श्रेष्ठ कहा, तैसेही भगवा
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