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निषेध किया तथा उसी रस्तेसे वर्तमानिक कितनेही लोग निषेध करते हैं सोतो अपनी आत्म घातका ही कारण करते हैं इस बातको विवेकी जन स्वयं विचार लेवेंगे,
और देखिये बड़ी ही आश्चर्यकी बात है कि-नीचगौत्रके विपाक रूप तथा आश्चर्यरूप ब्राह्मणकुलमें भगवान उत्पन्न हुए सो व्यवहार विरुद्ध अतिनिन्दनीक कहते हुएभी उसीको कल्याणक मानते है और नीचगौत्रका विपाक भोगेबाद (क्षय हुएबाद) व्यवहार विरुद्ध निन्दनीकपना मिटानेके लिये उत्तम कुलमें पधारे उसीको कल्याणत्वपनेसे निषेध करते हैं सो विनयविजयजीकी तथा वर्तमानिक कदाहियोंकी विवेक शून्यताकी विद्वत्ताका निज परके आत्मघात करने वाला कलयुगी प्रकाश ही मालूम होता है सो गडडरीह प्रवाही अधपरंपरा वाले और दूष्टिरागके फन्दमें फंसे हुए जनोंके सिवाय आत्मार्थियोंको अवश्यमेव परिहरणे योग्य है इसको भी विवेकी जन स्वयं विचार लेवेंगे,
और ब्राह्मणकुलमें भगवान्का उत्पन्न होना सो निन्दाका और लज्जाका कारण कहा जा सकता है नतु उत्तम कुलमें पधारना सो, क्योंकि देखो, यदि ऋषभदत्त ब्राह्मणके धरे भगवान्का जन्म होता तो तत्वज्ञान रहित ब्राह्मण लोग बिना विचार कियेही हरेक जैनीले हरेक प्रसंगमें वारंवार क्षुद्रपनेकी वाचालता प्रगट करते ही रहते कि जैनियोंके परमेश्वर तो ब्राह्मण लोग होते हैं और अब जैनी लोग ब्राह्मणोंको पूजने वगैरहकी बातोंको नहीं मानते हैं सो परमेश्वरके द्रोहीहैं इस तरहसे बालजीवोंके आगे अपना प्रपंच प्रगट करके जैनियोंकी निन्दा पूर्वक मिथ्यात्व बढ़ाते रहते और अपनी धम जालमें भोले जीवोंको फंसाकर अपना अभीष्टसिद्ध करने के लिये जैनियोंको
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