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[ ५३०] शास्त्रोंके वचनोंको सत्यमान्यकर उनपर पूर्ण विश्वास (श्रद्धा) रखने वाले सत्यग्रहणाभिलाषी श्रीजिनाज्ञाके आराधक सम्यकत्वधारी हो तब तो गर्भापहार रूप भगवान्का दूसरा च्यवन कल्याणकको निषेध करनेके लिये अतिनिन्दनीक वगैरह शब्द कह करके, संसार परिभ्रमणका कारण करते हो जिसको तत्काल छोड़कर उपर्यत महाराजके शास्त्र वचना नुसार निश्चय करके गर्भापहारको उत्तम प्रकारके भवकी गिनतीमें लेकरके कल्याणकत्वपने में अवश्यमेव मान्य करोगे तथा दूसरोंको कराओगे तबहीतो आप लोग श्रीगणधर महाराजके तथा श्रीअभयदेवसूरिजीके और पञ्चांगी शास्त्रोंके वचनोंको सत्य मान्यकर उनपर श्रद्धा रखनेवाले तथा न्यायानुसार सत्य बातको ग्रहण करनेवाले सम्यक्त्वधारी आत्मार्थी श्रीजिनाज्ञाके आराधक बन सकोगे, अन्यथा कदापि नहीं क्यों, कि जो गर्भापहार अतिनिन्दनीक होता तो शास्त्रकार महाराज गर्भापहारको निश्चय करके उत्तम प्रकारके भवकी गिनतीमें कदापि नहीं लाते और यहां तो खुलासा पूर्वक लाये हैं इसलिये गर्भापहार अतिनिन्दनीक तो क्या परन्तु कुछ भी निन्दनीक नहीं अर्थात् अतीव अष्ट है तथापि विनयविजयजीने अतिनिन्दनीक कहा तथा वर्तमानमें भी अन्धपरंपरासे जो लोग कहते हैं सो अपने और गच्छममत्वियोंके विकट कर्मबंधका और संसारमें परिभ्रमणका कारण करते हैं इस बातको निष्पक्षपाती विवेकी जन तो अपनी बुद्धिसे आप ही विचार लेवेंगे,___ ओर इतने परभी वर्तमानिक श्रीतपगच्छवाले महाशयोंको श्रीवीरप्रभुके छ कल्याणक मानने में लज्जा आती होवे तो
आषाढ़ शुदी ६ को देवानन्दा माताके उदरमें भगवान् पधारे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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