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गर्भापहार कराने का इन्द्रका धर्म है कल्याणकारी है सो निश्चय करके युक्तही है और भव्यजीवोंका कल्याणके लिये अच्छा मुहूर्त्त देखकर ब्राह्मणके घर से सिद्धार्थ राजाके घर में भगवान् पधारे इस तरहका लिखते हैं सो अनन्तपुण्यवाला एक भव अवतारी अनेक तीर्थ कर महाराजोंका भक्त और निर्मल सम्यकत्वरत्न के तथा अवधिज्ञान के धरनेवाला सौधर्मेन्द्रको तो गर्भापहारका होना कल्याणकारी ठहरा तब तो श्री वीरप्रभुके भक्त आत्मार्थी अन्य जीवोंको तो निःसन्देहतापूर्वक निश्चय करके गर्भापहार कल्याणकारी स्वयं सिद्ध होगया इससे तो गर्भापहारको विनय विजयजी के लिखने के अनुसार भी कल्याणकत्वपना प्रगटपने सिद्ध होता है तथापि विनयविजयजीने उसीको अतिन्दनीक लिखकर अपने अन्धपरंपरा के मिथ्यात्वकी भ्रमजाल में भोले जीवोंको गेरनेके लिये कल्याणकत्वपनेसे निषेध करनेका परि श्रम किया सो उनकी तात्पर्यार्थमें विवेक बुद्धिकी विकलता कहीजावे, या - जानबुझकर अपने गच्छकदाग्रहकी कल्पित बातको स्थापन करनेरूप अभिनिवेशिक मिथ्यात्व कहाजावे, अथवा विवेक बुद्धिके बिना अपने लिखे वाक्यका भी अर्थ भूल करके तत्वज्ञोंसे अपने विद्वत्ताकी हांसी करानेका कारण कहा जावे सो तो निष्पक्षपाती विवेकी पाठकगण अपनी बुद्धिसे आपही विचार लेना चाहिये ॥
और भी देखिये बड़ेही खेदके साथ बहुतही आश्चर्य की बात है कि विनयविजयजीने एक जगह तो गर्भापहारके करानेका इन्द्रका धर्म तथा अवश्य कर्तव्य और कल्याणकारी लिखा फिर इसी बात को अपने अन्तर मिथ्यात्व से पूर्वापरविरोधि वाक्यका भय न करके अतिमिन्दुमीक लिखते विवेक बुद्धि बिना विद्वाate अपनी हांसी करानेकी कुछ भी अपने हृदय में लज्जा नहीं
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