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[ २९] जीत एतत् आचार एषः । इत्यर्थः । केषां इत्याह । सक्कान्ति, शक्राणां देवेन्द्राणां देवराजानां, किं विशिष्टानां । तीअपच्च - प्पन्नमणागयाणन्ति,अतीत वर्तमानानागतांनां । कोऽसौ इत्याह यत, अरिहंतेत्ति, अर्हतो भगवंतः। तहप्पगारोहिंतीत्ति, तथा प्रकारेभ्यः पूर्वोक्त स्वरूपेभ्य अतादि कुलेभ्यस्तथा प्रकारेषु, उनादीनां अन्यतरेषु कुलेषु । सहारावित्तएत्ति मौयितु ॥ तं सेयं खल्वत्ति, तत्वे यः खलु निश्चय युक्तमेतन्ममापि अमण भगवंतं श्रीमहावीरं देवानंदाकुक्षाः। नायाणंत्ति, राज्ञां श्रीऋषभदेव स्वामि वश्यानां क्षत्रिय विशेषाणां मध्ये सिद्धार्थस्य क्षत्रियस्य भार्याश्त्रिशला क्षत्रियाण्याः कुक्षौगर्भतयामोचयितुं ॥इत्यादि।
उपरके पाठका संक्षिप्त भावार्थः कहते हैं कि-सौधर्मइन्द्रने भगवान्को नमस्कार करके सिंहासनपर बैठे बाद मन में विचारा कि-अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव यह चारों ही तरह के उत्तम पुरुष होते हैं सो क्षुद्र के कुल में, अधर्मी के कुलमें, अल्प कुटम्बवालेके कुलमें,कृपणके कुलमें, निर्द्धनकेकुलमें,भिक्षारोकेकुल में और ब्राह्मणके कुलमें, पहिले आये होवें, अबी आते होवे, और आगे आवेगे, ऐसा हुआ नहीं, होगा नहीं, और हो सकताभी नहीं, परन्तु उग्रकुलमें, भोग कुल में, राज्यकुलमें, आदिनाथस्वामीके कुलमें, क्षत्रियकुलमें, हरिवंस कुलमें, इस तरहसे उत्तमजाति और उत्तमकुल दोनों तरहकी शुद्धतावाले कुलोंमें अरिहंतादि चारोंही तरहके उत्तम पुरुष पहिले उत्पन्न हो गये, आगे होवे गे, वर्तमानकाले होते हैं, तथापि अनन्ती उत्सर्पिणी और अनन्ती अवसर्पिणी व्यतीत हो जानेस भवितव्यताके योगसे कुलमदादि कारणसे अरिहंतादिकोंके क्ष द्रादिकुलों में उत्पन्न होने वगैरहकी लोकमें आश्चर्य्यभूत एसी बातें आगे बनी है फिर बनेंगे और वर्तमानमें बनती भी है परन्तु
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