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विनय विजयजीने सिद्ध किये और फिर उसीका निषेध करनेके लिखे 'उसभेणं अरहा कोसलीए पंच उत्तरासाढ़े अभीइ छठे होत्पत्ति' इस श्रीजंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र के वचन से श्री आदिनाथ स्वामी के भी राज्याभिषेक सहित पांच कल्याणक उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में तथा अमोजित में छठा यह छ कल्याणक कहनेका दिखा करके फिर नक्षत्र सामान्यता से राज्याभिषेककी तरह गर्भापहारको भी नक्षत्र सामान्यतासे अन्दर गिननेका ठहराकर श्रीवीर प्रभुके छठे कल्याणकका अभाव सिद्ध किया हैं सो तो शास्त्रकार महाराजोंका अभिप्राय को समझे बिना भोले जीवों को गच्छ कदाग्रहमें फसाने के लिये उत्सूत्र भाषण रूप संसार वृद्धिका हेतु है क्योंकि प्रथमतो श्रीआदिनाथ स्वामीके राज्याभिषेकको कल्याणकत्व पने में कोई भी पूर्व - धरादि महाराजने मान्य करके किसीभी शास्त्र में नहीं लिखा है और श्रीमहावीर स्वामीके गर्भापहारको तो कल्याणकत्व पने में श्रीतीर्थंकर गणधरादि महाराजोंने मान्य करके अनेक शास्त्रों में प्रगटपने कथन किया है इसलिये श्रीआदिनाथ स्वामीके राज्याभिषेक के पाठसे श्रोवीर प्रभुके छठे कल्याणकका निषेध कदापि नहीं हो सकता है
तथा दूसरा यह कि श्री आदिनाथ स्वामीके राज्याभिषेक के मास, पक्ष, तिथिका नाम मात्रभी कोई शास्त्र में देखने में नहीं आता है इसलिये राज्याभिषेकको कल्याणकत्वपन में मास, पक्ष, तिथि पूर्वक आराधन भी नहीं हो सकता है परन्तु श्री चीरप्रमुके गर्भापहारके तो मास, पक्ष, तिथिका, नाम पूर्वक खुलासा अधिकार अनेक शास्त्रों में देखने में आता है इसलिये वर्मापहारको तो कल्याणकत्वपने में मास, पक्ष, तिथि, पूर्व क
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