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[ ] देवामन्दोदर श्रीमान् खेतषण्यां सदा शुचिः॥ भवती. गोसिमाससा पाहस शुचिता ततः॥१॥ शिवाला सर्व सिद्धपछा, अयोदश्यांमभूद्यतः ॥ तवापतारस्तेनेषा, सवं सिद्धा त्रयोदशी ॥२॥ शुक्लत्रयोदश्यांयश्चा चउमेरुप्रचालयन् ॥ चित्रं कृतवानद्योगा च्चैत्रमासोऽपि कथ्यते ॥३॥ यस्याद्य दशम्यांदुर्ग मोक्षमार्गस्यशीर्षकं ॥ चारित्रमादूतं युक्ता, मा. सोऽस्यमार्गशीर्षता ॥४॥ दशम्यांयस्यशुक्लायर्या, केवड पीरहोत्वया॥ह्यादत्तातेनमासोग्य, युक्तामाधवता प्रभो॥५॥ तवनिर्माण कल्याण, यद्दिनं पावयिष्यति । तन्नवेमियतोनाथ, मादृशोग्यक्षवेदिनः ॥६॥ सिद्धार्थ राजांगन देवराज, कल्याणकैषभिरितिस्तुतस्त्वम् ॥ तथाविधेयांतरवैरिषटकं पपा जयाम्याशु तवप्रसादात् ॥७॥
उपरके दोनों पाठोंका भावार्थ कहते हैं कि, हे-नाय प्रावत कल्पनामा दशवें देवलोकके पुष्योत्तर विमानसे देवानन्दा माताके उदर रूपी कमलमें राजहंसको सरह जिस भाषाढ़ मासकी शुक्ल षष्ठीको तीर्थ करत्व पनेकी उधमी करके युक्त आपने अवतार लिया सो आप सदा (हमेसां) पवित्र है वो आपके पवित्र अवतारसे भव्य जीवोंको पवित्रता प्राप्त होवे इसमें तो कोई आश्चर्य नहीं है परन्तु आपके अवतारसे मासको भी पवित्रता प्राप्त हो गई यह बड़ा आश्चर्य हुआ इसीही कारणसे आषाढको शाओंमें शुधि नाम पवित्र कहा है सो युक्तही है, तथा मा. श्विन कृष्ण त्रयोदशीको देवानन्दा माताके उदरसे मनको आनन्दके उत्पन्न करनेवाले ऐसे भाप त्रिशला माताके उदर में विराजमान हुए सो आपके यहां पधारनेके कारणसे ही
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