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भदत्त ब्राह्मणके घर में ठहर गये ऐसे वो भगवान् घरम जिनेश्वर महाराज श्रीवीरप्रभु भव्यजीवोंका कल्याण करो
अब देखिये उपयुक्त शशस्त्र प्रमाणानुसार श्री वीरप्रभुके देवलोकका च्यवन से देवानन्दा माताको कुक्षिमें उत्पन्न होना सो आषाढ़ खुदी ६ के प्रथम च्यवन कल्याणक की तरह ही देवानन्दा माताको कुक्षिसे गर्भं संहरणसे त्रिशला माताकी किक्ष में संक्रमण हुआ सो आश्विनबदी १३ को गर्भापहाररूप दूसरा च्यवन कल्याणकका भी खुलासा पूर्वक वर्णन है और जन्म, दीक्षा, ज्ञान, मोक्ष, तो प्रगट है इसलिये अपने गच्छ पक्षका आग्रह छोड़करके श्रीवीरप्रभुके छहों कल्याणकोंको आत्मार्थियोंको मान्य करने चाहिये क्योंकि 'समणे भगव महावीरे तिन्नाणोवगए आविहुत्या च इस्सामिप्ति जाणइ
मान जागड़ चुएमित्तिजाराइ' इस पाठकी तरह ही 'समणे भगव' महावीरे तिन्नाणोवगए आविहुत्था साहरिज्जिहसामित्ति जागद सहरिज्ज माणेन कण साहरिएमत्ति जाणइ' यहमी पाठ समान होनेसे तथा मास पक्ष तिथि नक्षत्रका और चौदहस्वप्न देखने वगैरहका खुलासा भी दोनों वैर प्रगटपने होते भी एकको कल्याणक मानना और दूसरेको कल्याणक नहीं मानना यह तो प्रत्यक्ष करके अन्यायकी बात झूठे पक्षके हठवादियोंके सिवाय आत्मार्थी न्यायवान् पुरुषतो कदापि मान्य नहीं कर सकते हैं तथा न कर सकेंगे इस बातको विवेकी तत्वज्ञ जनतो स्वयं विचार लेवेंगे, -
और अब फिरमी पाठकगणको विशेष निःसन्देह होनेके लिये श्रीवीरप्रभुके छहों कल्याणकों की पृथक् पृथक्
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