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[१४] महिनेकी वैशाखता याने श्रेष्ठतायुक्तही हैं। और हे स्वामी आपके पांच कल्याणक तो हस्तोत्तरा नक्षत्र में जिन जिन मास पक्ष तिथिको हुए उन उन मास पक्ष तिथियोंको तो आपके पांचों कल्याणकोंने पवित्र किये जिससे उन्होंके नामभी सार्थक हो गये परन्तु आपका छठा निर्वाण कल्याणक किस मास पक्ष तिथि नक्षत्रको कब पवित्र करके उसीका गुणयन सार्थक माम क्या रख्खेगा सोतो परोक्ष तथा भावी वस्तु के जानने वाला ज्ञान रहित और चरमचक्ष से प्रत्यक्ष वस्तुके जानने वाला ऐसा मैं नहीं जान सकता हूं तथापि इतना तो जानता हूं कि आपके पांच कल्याणकतो होगये और छठा मोक्ष कल्याणक होगा इसलिये इन छही कल्याणकों करके सिद्धार्थ राजाके पुत्र, हे जगत पूज्य मैंने आपकी भक्ति पूर्वक स्तुति करी है सो अब आप मेरेपर ऐसी जलदिसै कृपा करो कि जिससे आपके प्रसादसे में, मेरे अन्तरके छ भाव शत्रओंको तत्काल जीत लेऊ अर्थात् आपके छहों कल्याणकोकी मने स्तुति करी है उसासे मेरे अन्तरके ( पांच इन्द्रिय तथा छठा मन, या-पांच प्रमाद और छठा मन ॥ अथवा ॥ क्रोध मान माया लोभ और राग देष यह ) ६ वैरियोंका शीघु नाश हो॥ ___ अब देखिये उपयुक शास्त्रानुसार भगवान्के विद्यमान समय समोवसरण ही छहों कल्याणकोंकी स्तुति होती थी तथा वर्तमानमें भी अनेक शास्त्रोंमें प्रगटपने लिखे है तिस परभी विनयविजयजीने उसोका निषेध किया तथा वर्तमानिक तपगच्छीय विहान् नाम धरातेभी उसोका निषेध करते हैं सो
थाही कदाग्रहसे उत्सत्र भाषण करके मिथ्यात्वके कितने विपाक भवान्तरमें भोगेंगे जिसकोतो श्रीजानोजी महाराजके सिवाय कोईभी कहनेको समर्थ नहीं है
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