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पल्याणक अर्थ होता है, जैसे-किसीको, तीन आदमियों मन पहिलेने पूछा-श्रीमादिनाथ स्वामीका मोक्ष स्थान किस जगह पर तथा दूसरेने पूछा-मोक्ष कल्याणक किस जगह पर
और तीसरेने पूछा-मोक्ष गमन किस जगह पर इस तरह के तीनों प्रश्नों के तीनों शब्दों का तात्पर्यार्थ एक होनेसे सबके उत्तर में श्रीअष्टापदजी पर कहना होगा सो इसी मुजेश ही सभी तीर्थंकर महाराजों के च्यवनादि पांच पांच स्थान कहो अथवा पांच पांच कल्याणक कहो दोनों शब्द पर्यायवाची एकार्थ सूचक है 'यति मुनि साधू वत्' इसी कारण श्रीस्य:नांगजी सूत्रके पञ्चम स्थानके प्रथम उद्देशमें श्रीगणधर महाराज श्रीतीर्थ कर महाराजों के कल्याणकाधिकारे १४ भगवानोंके पांच पांच कल्याणकों के नक्षत्र गिनाये हैं उसीकी व्याख्या करते श्रीअभयदेवमूरिजी महाराजने श्रीपद्मप्रभुजी आदि १४ तीर्थंकर महाराजोंके च्यवनादिकल्याणकों के मास, पक्ष,तिथि,नक्षत्र,नगरीस्थान,वगैरहका खुलासाकी व्याख्यामें ध्य बनादिपांच पांच स्थान कहके यहां स्थान शब्दका व्यव. हार किया सो उपरके न्यायानुसार कल्याणकका ही कथन समझना चाहिये और इस बातका विशेष निर्णय न्यायांशी निधिजीके लेख की समीक्षा आगे लिखने में आवेगा
और श्रीहरिभद्रसूरिजी कृत श्रीपंचाशकजी सूत्रके तथा नीअभय देवसरिजी कृत तत्तिके अभिप्रायको समझे बिना ही श्रीवीरप्रभुके पांच कल्याणकों के दिन दिखाकर जो छठा कल्याणक होता तो उसीका भो दिन कहते, इस तरहका लिखा सोझी अज्ञानताका कारण है क्योंकि वहां तो भरत क्षेत्रको तथा ऐरवर्त क्षेत्र की उत्सर्पिणी और
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