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अवसर्पिणी में हो गई तथा होनेवाली सबी चौबीसी भों के सभी तीर्थंकर महाराजों की बहुत अपेक्षा सम्बंधी लिखने में आया है और सभी तीर्थकर महाराजोंके छ छ कल्याणक नहीं होते हैं इसलिये उस प्रसंग में छठे कल्याणकका दिन नहीं कहा है परन्तु खास श्रीमहावीर स्वामीके चरित्राधिकारे तो अनेक शास्त्रां में छठे कल्याणकका दिन खुलासे लिखा हैं तथा उपरकी बातका विशेष विस्तार पहिलेही न्यायरत्नजीके लेखकी समीक्षा में लिखने में आगया है ।
और उपरोक्त सुखबोधिका में खास विनयविजयजीने ही चौदह स्वप्नाधिकारे [ त्रिशला क्षत्रियाणी 'तप्पढमया एत्ति, तत्प्रथमतया प्रथमं इत्यर्थः । इमं स्वप्नं पश्यतीति संबंधः, अत्र प्रथम इमं पश्यतीति बहुभिर्जिनजननी भिस्तथा दृष्टत्वात्पाठानुक्रममपेक्षयेाक्तं अन्यथा ऋषभदेव माता प्रथम वृषभं वीर माता च सिंहं ददर्शेति ] इस तरहका पाठ लिखा है इसका मतलब यह है कि त्रिशला माताने प्रथम स्वप्न में हस्थी देखा ऐसा स त्रकारने लिखा सो बहुत तीर्थंकरो के माताकी अपेक्षा से लिखा है, नहींतो श्रीआदिनाथ स्वामीको मरुदेवी माताने ती प्रथम स्वप्ने वृषभको और श्रीवीरप्रभुकी त्रिशला माताने प्रथम स्वप्ने सिंहको देखा है परन्तु शेष बहुत तीर्थंकर महाराजों की माताने प्रथम स्वप्न में हरतीको देखा इसलिये बहुत अपेक्षा से श्रीवीर प्रभुकी माता के सम्बन्धमें भी प्रथम स्वप्न में हस्ती देखनेका सूत्रकारने लिखा है—
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अब इस जगह भी विवेकी पाठकगणको विचार करना चाहिये कि जैसे श्री वीरप्रभुको माताने प्रथम स्वप्न में सि
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