Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षट्प्राभृते
[१.२दर्शनमूलो धर्म उपदिष्टो जिनवरैः शिष्याणाम् ।
तं श्रुत्वा स्वकर्णे दर्शनहीनो न वन्दितव्यः ।।२।। ( दंसणमूलो धम्मो ) दर्शनं सम्यक्तं मूलमधिष्ठानमाधारा प्रासादस्य गर्तापूरवत् वृक्षस्य पातालगत-जटावत् प्रतिष्ठा यस्य धर्मस्य स दर्शनमूल एवंगुणविशिष्टो धर्मो दयालक्षणः ( जिणवरेहिं ) तीर्थकरपरम-देवरपरकेवलिभिश्च ( उवइट्ठो ) उपदिष्टः प्रतिपादितः । केषामुपदिष्टः ? ( सिस्साणं ) शिष्याणां गणघर-चक्रधर-वज्रधरादीनां भव्यवरपुण्डरीकाणाम् । (तं सोऊण संकण्णे ) तं धर्म श्रुत्वाऽऽकर्ण्य स्वकर्णे निजश्रवणे आत्मशब्दग्रहे । ( देसणहीणो ण वंदिव्वो) दर्शनहीनः सम्यक्त्वरहितो न वन्दितव्यो नैव वन्दनीयो न माननीयः । तस्यान्नदानादिकमपि न देयम् । उक्तं च
मिथ्यादृग्भ्यो ददद्दानं दाता मिथ्यात्ववर्धकः । । अथ कोऽसौ दर्शनहीन इति चेत् ? तीर्थकरपरमदेवप्रतिमां न मानयन्ति, न पुष्पादिना पूजयन्ति । किमिति न पूजयन्ति ? मिथ्यादृष्टयः किलैवं वदन्तिका उपदेश दिया है, सो उसे अपने कानों से सुनकर सम्यग्दर्शन से रहित मनुष्य को वन्दना नहीं करना चाहिये ॥ २॥
विशेषार्थ-जिस प्रकार महल का मूल आधार नीव है और वृक्ष का मूल आधार पाताल तक गई हुई उसकी जड़ें हैं उसी प्रकार धर्म का मूल आधार सम्यग्दर्शन है। सम्यग्दर्शन बिना धर्मरूपी महल अथवा धर्मरूपी वृक्ष ठहर नहीं सकता है। जीवरक्षारूप आत्मा को परिणति को दया कहते हैं, वह दया ही धर्मका लक्षण है । तीर्थंकर परमदेव तथा अन्यान्य केवलियों ने अपने गणधर, चक्रवर्ती तथा इन्द्र आदि शिष्यों को धर्म का यही स्वरूप बताया है। इसे अपने कानोंसे सुनकर सम्यग्दर्शनसे हीन मनुष्य को नमस्कार नहीं करना चाहिये । धर्मको जड़स्वरूप सम्यग्दर्शन ही जिसके पास नहीं है वह धर्मात्मा कैसे हो सकता है ? और जो धर्मात्मा नहीं है वह वन्दना या नमस्कार का पात्र किस तरह हो सकता है ? ऐसे मनुष्य को तो आहारदान आदि भी नहीं देना चाहिये, क्योंकि कहा है
मिथ्येति-मिथ्यादृष्टियों के लिये दान देनेवाला दाता मिथ्यात्वको बढ़ानेवाला है।
अब प्रश्न यह है कि वह सम्यग्दर्शन से रहित मनुष्य कौन है जिसे नमस्कार नहीं करना चाहिये । तो उसका उत्तर यह है कि जो तीर्थंकर परमदेव की प्रतिमा को नहीं मानते हैं, पुष्प आदि सामग्री से उसकी पूजा नहीं करते हैं वे मिथ्यादृष्टि हैं।
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