Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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-१.२]
दर्शनप्राभृतम् श्रेष्ठस्य । इत्यनेन विशेषणेन प्रथमतीर्थकर-श्रोमदादिनाथादोनामपि सर्वतीर्थंकरसमुदायस्यापि नमस्कारः कृतो भवतीति वेदितव्यम् ।
दंसणमूलो धम्मो उवइट्ठो जिणवरेहिं सिस्साणं ।
तं सोऊण सकण्णे देसणहीणो ण वंदिव्वो ॥२॥ पुत्र, अन्तिम तीर्थकर, भरतक्षेत्र में स्थित विदेह देश सम्बन्धी कुण्डपुर नगर में उत्पन्न, सुवर्ण के समान वर्णवाले, कुछ अधिक बहत्तर वर्ष की उत्कृष्ट आयु से युक्त, सात हाथ ऊँचे, निर्भयता से प्रसन्न संगम नामक देव द्वारा स्तुत; तथा वीर, वर्धमान, महावीर, महतिमहावीर और सन्मति इन पाँच नामों से प्रसिद्ध श्री वर्धमान भगवान् को मन-वचन-काय से नमस्कार कर संक्षेपपूर्वक पूर्वाचार्यों के क्रम का उल्लंघन न कर सम्यग्दर्शन का स्वरूप कहेगा। गाथा में आया हआ जिणवरवसहस्स शब्द विशेषण और विशेष्य दोनों हैं। इसलिये विशेषण पक्ष में बड्ढमाणस्स का विशेषण मानकर उसका अर्थ ऐसा करना चाहिये कि जो वर्धमान स्वामी कर्मरूप शत्रुओं को जोतनेवाले गौतमादि गणधरों में बृषभ-श्रेष्ठ हैं उन्हें नमस्कार कर, और विशेष्य पक्ष में बड्ढमाणस्स को विशेषण मानकर ऐसा अर्थ करना चाहिये कि जो ( वद्धते-ज्ञानादिगुणैः समेधते
वृद्धि प्राप्नोतीति वर्धमानः) ज्ञानादि गुणों से निरन्तर वृद्धि को प्राप्त हो . रहे हैं ऐसे प्रथम जिनेन्द्र श्री वृषभ देव को अथवा वृषभ-अजित आदि
चौबीस तीर्थंकरों के समूह को नमस्कार कर। क्योंकि कटपयपुरःस्थवर्णेः' इस नियम के अनुसार 'वर' का अर्थ २४ होता है, अतः जिनवरवषभस्य का अर्थ श्रेष्ठ चौबीस जिनेन्द्र भो होता है। ___ गाथार्थ-जिनेन्द्र भगवान् ने शिष्यों के लिये सम्यग्दर्शनमूलक धर्म १. कटपयपुरस्थवर्णैर्नव-नव-पञ्चाष्टकल्पितैः क्रमशः ।
स्वरअनशून्यं संख्या मात्रोपरिमाक्षरं त्याज्यम् ॥
अर्थात् क ट प और य के आगे क्रम से ९९५ और ८ अक्षरों से उतने अंकों को कल्पना करना चाहिये स्वर, अ और न से शून्य समझना चाहिये और मात्रा तथा संयुक्त अक्षर त्याज्य मानना चाहिये, अर्थात् उनसे किसी अङ्क का बोध नहीं होता। इस नियम के साथ 'अङ्कानां वामतो गतिः' अंकों की गति उल्टी होती है यह नियम भी ध्यान में रखना चाहिये। उल्लिखित क्रम के अनुसार व से ४ और रसे २ अकूलिये जाते है, तथा दोनों को विपरीत गति से पढ़नेपर 'वर' का अर्थ २४ निकलता है। .
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