Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
उसी प्रकार यहाँ भी समग्र वर्णन कहना चाहिए; यावत्-अद्धा-समय (काल) रूप है।
१३. तिरियलोगखेत्तलोए णं भंते ! किं जीवा ? एवं चेव। [१३ प्र.] भगवन् ! क्या तिर्यग्लोक में जीव हैं ? इत्यादि प्रश्न । [१३ उ.] गौतम ! (इस विषय में समस्त वर्णन) पूर्ववत् जानना चाहिए। १४. एवं उड्ढलोगखेत्तलोए वि। नवरं अरूवी छव्विहा, अद्धासमओ नत्थि।
[१४] इसी प्रकार ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक के विषय में भी जानना चाहिए; परन्तु इतना विशेष है कि ऊर्ध्वलोक में अरूपी के छह भेद ही हैं, क्योंकि वहाँ अद्धासमय नहीं है।
१५. लोए णं भंते ! किं जीवा० ?
जहा बितियसए अत्थिउद्देसए लोयागासे (स० २ उ० १० सु० ११), नवरं अरुवी सत्तविहा जाव अधम्मत्थिकायस्स पदेसा, नो आगासत्थिकाए, आगासत्थिकायस्स देसे आगासत्थिकायस्स पएसा, अद्धासमए। सेसं तं चेव।
[१५ प्र.] भगवन् ! क्या लोक में जीव हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[१५ उ.] गौतम ! जिस प्रकार दूसरे शतक के दसवें (अस्ति) उद्देशक (सू. ११) में लोकाकाश के विषय में जीवादि का कथन किया है, (उसी प्रकार यहाँ भी जानना चाहिए।) विशेष इतना ही है कि यहाँ अरूपी के सात भेद कहने चाहिए; यावत् अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, आकाशास्तिकाय का देश, आकाशास्तिकाय के प्रदेश और अद्धा-समय। शेष पूर्ववत् जानना चाहिए।
१६. अलोए णं भंते ! किं जीवा० ? एवं जहा अत्थिकायद्देसए अलोगागासे ( स. २ उ. १० सु. १२) तहेव निरवसेसंजाव अणंतभागूणे। [१६ प्र.] भगवन् ! क्या अलोक में जीव हैं ? इत्यादि प्रश्न । . [१६ उ.] गौतम ! दूसरे शतक के दसवें अस्तिकाय उद्देशक (सू. १२) में जिस प्रकार अलोकाकाश के विषय में कहा, उसी प्रकार यहाँ भी जानना चाहिए; यावत् वह आकाश के अनन्तवें भाग न्यून है।
विवेचन-अधोलोक आदि में जीव आदि का निरूपण—प्रस्तुत ५ सूत्रों (१२ से १६ तक) में अधोलोक, तिर्यग्लोक, ऊर्ध्वलोक, लोक और अलोक में जीवादि के अस्तित्व-नास्तित्व का निरूपण किया गया है।
निष्कर्ष-अधोलोक और तिर्यग्लोक में जीव, जीव के देश, प्रदेश तथा अजीव, अजीव के देश, प्रदेश और अद्धा-समय, ये ७ हैं, किन्तु ऊर्ध्वलोक में सूर्य के प्रकाश से प्रकटित काल न होने अद्धा-समय को छोडकर