Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
अणंतेहिं। [२९-४ प्र.] (भगवन् ! धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश) जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है? [२९-४ उ.] (गौतम ! वह) अनन्त(जीव-)प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। [५] केवतिएहिं पोग्गलऽस्थिकायपएसेहिं पुढे ? अणंतेहिं। [२९-५ प्र.] (भगवन् ! वह) पुद्गलास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? [२९-५ उ.] (गौतम ! वह) अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। [६] केवतिएहिं अद्धासमएहिं पुढे ? सिय पुढे, सिय नो पुढे। जइ पुढे नियमं अणंतेहिं। [२९-६ प्र.] (भगवन् ! वह धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश) अद्धाकाल के कितने समयों से स्पृष्ट होता है?
[२९-६ उ.] (गौतम ! वह) कथंचित् स्पृष्ट होता है और कथंचित् स्पृष्ट नहीं होता। यदि स्पृष्ट होता है तो नियमतः अनन्त समयों से स्पृष्ट होता है।
३०. [१] एगे भंते ! अहम्मऽत्थिकायपएसे केवतिएहिं धम्मऽथिकायपएसेहिं पुट्टे ? गोयमा ! जहन्नपए, चउहि, उक्कोसपए सत्तहिं। [३०-१ प्र.] भगवन् ! अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ?
[३०-१ उ.] (गौतम ! वह अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश,) धर्मास्तिकाय के जघन्य पद में चार और उत्कृष्ट पद में सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है।
[२] केवतिएहिं अहम्मऽथिकायपदेसेहिं पुढे ? जहन्नपए तीहिं, उक्कोसपदे छहिं। सेसं जहा धम्मऽस्थिकायस्स ? [३०-२ प्र.] (भगवन् ! अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश ) कितने अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट होता
[३०-२ उ.] (गौतम ! वह) जघन्य पद में तीन और उत्कृष्ट पद में छह प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? शेष सभी वर्णन धर्मास्तिकाय के वर्णन के समान समझना चाहिए।
३१. [१] एगे भंते ! आगासऽस्थिकायपएसे केवतिएहिं धम्मऽथिकायपएसेहिं पुढे ?
सिय पुढे, सिय नो पुढे। जति पुढे जहन्नपदे एक्कणं वा दोहिं वा तीहिं वा चउहिं वा, उक्कोसपदे सत्तहिं।