Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पन्द्रहवाँ शतक
५२९ किच्चा जाइं इमाइं तेउक्काइयविहाणाई भवंति, तं जहा—इंगालाणं जाव' सूरकंतमणिनिस्सियाणं तेसु अणेगसयसह० जाव किच्चा जाइं इमाइं आउकाइयविहाणाई भवंति, तं जहा–उस्साणं जाव' खातोदगाणं, तेसु अणेगहयसह० जाव पच्चायाइस्सति, उस्सण्णं च णं खारोदएसु खातोदएसु, सव्वत्थ वि णं सत्थवझे जाव किच्चा जाइं इमाइं पुढविकाइयविहाणाई भवंति, तं जहा—पुढवीणं सक्कराणं जाव सूरकंताणं, तेसुअणेगसय० जावपच्चायाहिति, उस्सन्नं च णं खरबादरपुढविकाइएसु, सव्वत्थ वि णं सत्थवज्झे।
___जाव किच्चा रायगिहे नगरे बाहिं खरियत्ताए उववजिहिति। तत्थ वि णं सत्थवझे जाव किच्चा दोच्चं पि रायगिहे नगरे अंतोखरियत्ताए उववजिहिति। तत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंझगिरिपादमूले बेभेले सन्निवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पच्चायाहिति। तए णं तं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं जोव्वणमणुप्पत्तं पडिरूविएण सुंकेणं पडिरूविएणं विणएणं पडिरूवियस्स भत्तारस्स भारियत्ताए दलइस्संति। सा णं तस्स भारिया भविस्सति इट्ठा कंता जाव अणुमया भंडकरंडगसमाणा तेल्लकेला इव सुसंगोविया, चेलपेला इव सुसंपरिहिया, रयणकरंडओ विव सुरक्खिया सुसंगोविया—'मा णं सीयं मा णं उण्हं जाव परीसहोवसग्गा फुसंतु'। तए णं सा दारिया अन्नदा कदापि गुव्विणी ससुरकुलाओ कुलघरं निजमाणी अंतरा दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं किच्चा दाहिणिल्लेसु अग्गिकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववजिहिति।
[१३८] वहाँ से वह यावत् निकल कर स्त्रीरूप में उत्पन्न होगा। वहाँ भी शस्त्राघात से मर कर दाहज्वर की वेदना से यावत् दूसरी बार पुनः छठी तम:प्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नरकावासों में नैरयिक होगा। वहाँ से यावत् निकल कर पुनः दूसरी बार स्त्रीरूप में उत्पन्न होगा। वहाँ भी शस्त्र से वध होने पर यावत् काल करके पंचम धूमप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला नैरयिक होगा। वहाँ से यावत् मर कर उरः परिसरों में उत्पन्न होगा। वहाँ भी शस्त्राघात से यावत् मर कर दूसरी बार पंचम नरकपृथ्वी में, यावत् वहाँ से निकल कर दूसरी बार पुनः उर:परिसरों में उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत् काल करके चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नरकावासों में नैरयिक रूप में उत्पन्न होगा, यावत् वहाँ से निकलकर सिंहों में उत्पन्न होगा। वहाँ भी शस्त्र द्वारा मारा जाकर यावत दसरी बार चौथे नरक में उत्पन्न होगा। यावत वहाँ से निकल कर दूसरी बार सिंहों में उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत् काल करके तीसरी बालुकाप्रभा नरकपृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होगा। यावत् वहाँ से निकल कर पक्षियों में उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत् शस्त्राघात से मर कर फिर दूसरी बार तीसरी बालुका प्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत् शस्त्राघात से मर कर दूसरी बार पक्षियों में उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत् काल करके दूसरी शर्कराप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत् निकल कर सरीसृपों में उत्पन्न होगा। वहाँ भी शस्त्र से मारा जा कर यावत् दूसरी
१. 'जाव' पद सूचक पाठ—'जालाणं मुम्मुराणं अच्चीणं' इत्यादि। २. 'जाव' पद सूचक पाठ—'हिमाणं महयाणं' ति। ३. 'जाव' पद सूचक पाठ—'बालुयाणं उवलाणं' इत्यादि। -भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६९४