Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 831
________________ ७९८ नीचे लिखे रेखाचित्र से इस उद्देशक का वक्तव्य सरलता से समझ में आ जाएगा - भवनावास, विमानावास देव-नाम भवनपति देव वाणव्यन्तर देव ज्योतिष्क देव वैमानिक सौधर्मकल्प देव ईशानकल्प सनत्कुमारकल्प माहेन्द्रकल्प ब्रह्मलोककल्प लान्तककल्प महाशुक्रकल्प सहस्रारकल्प आणत प्राणत आरण-अच्युत नौ ग्रैवेयक अनुत्तर विमान या नगरावास कथंचित् शाश्वत आश्वत भवनावास भूमिगत नगरावास विमानावास विमानावास 11 11 11 11 11 11 11 11 11 17 17 11 11 11 17 11 11 11 सर्व रत्न मय सर्व रत्नु मम सर्व स्फटिक मय सर्व रत्न मय 11 11 11 11 11 11 11 11 21 किंमय " 11 17 11 11 11 77 " 11 11 11 १. (क) भगवती. प्रमेयचन्द्रिका टीका भा. १३, पृ. ४१२-४१३ (ख) वियाहपण्णत्ति भा. २, मू.पा.टि. पृ. ८४५ २. (क) भगवती. विवेचन भा. ६ (पं. घेवरचन्दजी) पृ. २८०७-८ (ख) भगवती. भा. १३, (प्र.चं. टिका), पृ. ४०७ स्वच्छ, श्लक्ष्ण, निर्मल कोमल, घृष्ट मृष्ट, कान्तिमय, मलविहीन, उद्योत सहित, प्रसन्नताजनक दर्शनीय, अतिरम्य 17 11 11 17 17 17 11 11 कैसे ? " 11 11 11 11 11 17 व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कितने ? ६४ लाख असंख्यात लाख असंख्यात लाख बत्तीस लाख क्रमशः ९ और १ कठिन शब्दार्थ — दव्वट्टयाए— द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से । किंमया — किससे बने हैं, कैसे हैं । सव्वफालिहामया—सर्वस्फटिकरत्नमय । वक्कमंति : विशेषार्थ — जो पहले वहाँ कभी उत्पन्न नहीं हुए हैं, वे उत्पन्न होते हैं। विउक्कमंति—– (१) विशेषरूप से उत्पन्न होते हैं, (२) विनष्ट होते हैं । चयंति — च्यवते हैं, मरते हैं, च्युत होते हैं— निकलते हैं । उववज्जंति—पुन: उत्पन्न होते हैं । ॥ उन्नीसवाँ शतक : सप्तम उद्देशक समाप्त ॥ २८ लाख १२ लाख ८ लाख ४ लाख ५० हजार ४० हजार ६ हजार ४०० ३००

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