Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
सत्तमो उद्देसओ : 'भवणा'
सप्तम उद्देशक : भवन ( - विमानावाससम्बन्धी ) चतुर्विध देवों के भवन - नगर - विमानावास - संख्यादि-निरूपण १. केवतिया णं भंते ! असुरकुमारभवणावाससयसहस्सा पन्नत्ता ? गोयमा ! चोयट्ठि असुरकुमारभवणावाससयसहस्सा पत्रत्ता । [१ प्र.] भगवन् ! असुरकुमारों के कितने लाख भवनावास कहे गए हैं ? [१ उ.] गौतमं ! असुरकुमारों के चौसठ लाख भवनावास कहे गए हैं। २. ते णं भंते! किंमया पन्नत्ता ?
·
गोयमा ! सव्वरयणामया अच्छा सण्हा जाव पडिरूवा । तत्थ णं बहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमंति विउक्कमंति चयंति उववज्जंति, सासया णं ते भवणा दव्वट्टयाए, वण्णपज्जवेहिं जाव फासफ्ज्जवेहिं असासया ।
[२ प्र.] भगवन् ! वे भवनावास किससे बने हुए हैं ?
[ २ उ. ] गौतम! वे भवनावास रत्नमय हैं, स्वच्छ, श्लक्ष्ण (चिकने या कोमल) यावत् प्रतिरूप (सुन्दर) हैं। बहुत-से जीव और पुद्गल उत्पन्न होते हैं, विनष्ट होते हैं, च्यवते हैं और पुन: उत्पन्न होते हैं। वे भवन द्रव्यार्थिक रूप से शाश्वत हैं, किन्तु वर्णपर्यायों, यावत् स्पर्शपर्यायों की अपेक्षा से अशाश्वत हैं।
1
३. एवं जाव थणियकुमारावास ।
[३] इसी प्रकार स्तनितकुमारावासों तक जानना चाहिए ।
४. केवतिया णं भंते ! वाणमंतरभोमेज्जनगरावाससयसहस्सा पन्नत्ता ?
गोयमा ! असंखेज्जा वाणमंतरभोमेज्जनगरावाससयसहस्सा पन्नत्ता ।
[४ प्र.] भगवन्! वाणव्यन्तर देवों के भूमिगत नगरावास कितने लाख कहे गए हैं ?
[४ उ.] गौतम! वाणव्यन्तर देवों के भूमि के अन्तर्गत असंख्यात लाख नगरावास कहे गए हैं।
५. ते णं भंते! किंमया पन्नत्ता ?
सेसं तं चेव ।
[५ प्र.] भगवन् ! वाणव्यन्तरों के वे नगरावास किससे बने हुए हैं ?
[५ उ.] गौतम! समग्र वक्तव्यता पूर्ववत् समझनी चाहिए।