Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 835
________________ ८०२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! चउबिहा भासानिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा—सच्चभासानिव्वत्ती, मोसभासानिव्वत्ती, सच्चामोसमासानिव्वत्ती, असच्चामोसमासानिव्वत्ती। [१५ प्र.] भगवन् ! भाषानिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? __[१५ उ.] गौतम! भाषानिवृत्ति चार प्रकार की कही गई है, यथा—सत्यभाषानिवृत्ति, मृषाभाषानिवृत्ति, सत्यामृषाभाषानिवृत्ति और असत्यामृषाभाषानिर्वृत्ति। १६. एवं एगिदियवजं जस्स जा भासा जाव वेमाणियाणं। । [१६] इस प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़ कर वैमानिकों तक, जिसके जो भाषा हो, उसके उतनी भाषानिवृत्ति कहनी चाहिए। १७. कतिविहा णं भंते ! मणनिव्वत्ती पन्नत्ता ? गोयमा! चउव्विहा मणनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा–सच्चमणनिव्वत्ती जाव असच्चामोसमणनिव्वत्ती। [१७ प्र.] भगवन् ! मनोनिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? [१७ उ.] गौतम! मनोनिवृत्ति चार प्रकार की कही गई है, यथा—सत्यमनोनिवृत्ति, यावत् असत्यामृषामनोनिवृत्ति। १८. एवं एगिदिय-विगलिंदियवज्जं जाव वेमाणियाणं। [१८] इसी प्रकार एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिकों तक कहना चाहिए। १९. कतिविहा णं भंते ! कसायनिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा! चउब्विहा कसायनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा—कोहकसायनिव्वत्ती जाव लोभ कसायनिव्वत्ती। [१९ प्र.] भगवन् ! कषाय-निर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है? [१९ उ.] गौतम! कषायनिर्वृत्ति चार प्रकार की कही गई है, यथा—क्रोधकषायनिर्वृत्ति यावत् लोभकषायनिर्वृत्ति। २०. एवं जाव वेमाणियाणं। [२०] इसी प्रकार यावत् वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। २१. कतिविधा णं भंते ! वणनिव्वत्ति पन्नत्ता? गोयमा ! पंचविहा वण्णनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा—कालवण्णनिव्वत्ती जाव सुक्किलवण्णनिव्वत्ती। [२१ प्र.] भगवन् ! वर्णनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ?

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