Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 837
________________ ८०४ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! एगा मसूरचंदासंठाणनिव्वत्ती पन्नत्ता । [ ३० प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के संस्थाननिर्वृत्ति कितनी है ? [३० उ. ] गौतम! उनके एकमात्र मसूरचन्द्र - (मसूर की दाल के समान) - संस्थान - निर्वत्ति कही गई है। ३१. एवं जस्स जं संठाणं जाव वेमाणियाणं । [३१] इस प्रकार जिसके जो संस्थान हो, तदनुसार निर्वृत्ति वैमानिकों तक कहनी चाहिए। ३२. कतिविधा णं भंते ! सन्नानिव्वत्ती पन्नत्ता ? गोयमा ! चउव्विहा सन्नाणिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा—-आहारसन्नानिव्वत्ती जाव परिग्गहसन्नानिव्वत्ती । [ ३२ प्र.] भगवन् ! संज्ञानिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? [३२ उ.] गौतम! संज्ञानिर्वृत्ति चार प्रकार की कही गई है, यथा—आहारसंज्ञानिर्वृत्ति यावत् परिग्रहसंज्ञनिर्वृ । ३३. एवं जाव वेमाणियाणं । [३३] इस प्रकार (नैरयिकों से लेकर) वैमानिकों तक, (संज्ञानिर्वृत्ति का कथन करना चाहिए)। ३४. कतिविधा णं भंते ! लेस्सानिव्वत्ती पन्नत्ता ? गोमा ! छव्विहा लेस्सानिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा— कण्हलेस्सानिव्वत्ती जाव सुक्कलेस्सा निव्वत्ती । [ ३४ प्र.] भगवन्! लेश्यानिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? [३४ उ.] गौतम! लेश्यानिर्वृत्ति छह प्रकार की कही गई है, यथा— कृष्णलेश्यानिर्वृत्ति यावत् शुक्ललेश्यानिर्वृत्ति । ३५. एवं जाव वेमाणियाणं, जस्स जति लेस्साओ । [३५] इस प्रकार (नैरयिकों से लेकर ) वैमानिकों पर्यन्त (लेश्यानिर्वृत्ति यथायोग्य कहनी चाहिए।) परन्तु जिसके जितनी लेश्याएँ हों, उतनी ही लेश्यानिर्वृत्ति कहनी चाहिए। ३६. कतिविधा णं भंते ! दिट्ठिनिव्वत्ती पन्नत्ता ? गोयमा ! तिविहा दिट्ठनिव्वती पन्नत्ता, तं जहा — सम्मद्दिट्ठिनिव्वत्ती, मिच्छादिट्ठिनिव्वत्ती, सम्मामिच्छादिट्ठिनिव्वत्ती । [ ३६ प्र.] भगवन् ! दृष्टिनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? [ ३६ उ. ] गौतम! दृष्टिनिर्वृत्ति तीन प्रकार की कही गई है यथा— सम्यग्दृष्टिनिर्वृत्ति, मिथ्यादृष्टिनिर्वृत्ति

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