Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 840
________________ उन्नीसवाँ शतक : उद्देशक-८ ८०७ कार्मण शरीरों की तथा मनुष्यों और तिर्यञ्चों के (जन्मतः) औदारिक, तैजस और कार्मण शरीरों की निर्वृत्ति होती ४. सर्वेन्द्रियनिर्वृत्ति—समस्त इन्द्रियों की आकार के रूप में रचना सर्वेन्द्रिय-निवृत्ति है। यह पांच प्रकार की है, जो एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय जीवों में होती है। ५. भाषानिर्वृत्ति—एकेन्द्रिय जीव के भाषा नहीं होती, उसके सिवाय जिस जीव के ४ प्रकार की भाषाओं में जो भाषा होती है, उस जीव के उस भाषा की निवृत्ति कहनी चाहिए। ६. मनोनिवृत्ति—एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों के सिवाय वैमानिकों पर्यन्त शेष समस्त संज्ञी पंचेन्द्रिय (समनस्क) जीवों के चार प्रकार की मनोनिवृत्ति होती है। ७. कषायनिर्वृत्ति—यह क्रोधादिचतुष्क कषायनिर्वृत्ति सभी संसारी जीवों के होती है। ८-९-१०-११. वर्णादिचतुष्टयनिर्वृत्ति—ये चारों निर्वृत्तियाँ चौवीस दण्डकवर्ती जीवों के होती हैं। १२. संस्थाननिर्वृत्ति संस्थान अर्थात् शरीर के आकारविशेष की निर्वृत्ति । यह छ: प्रकार की होती है। जिस जीव के जो संस्थान होता है, उसके वैसी संस्थाननिर्वृत्ति होती है। यथा-नारकों और विकलेन्द्रियों के हुण्डकसंस्थान होता है, भवनपति आदि चारों प्रकार के देवों के समचतुरस्रसंस्थान होता है, तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय और मनुष्य के छहों प्रकार के संस्थान होते हैं । पृथ्वीकायिक जीवों के मसूर की दाल के आकार का, अप्कायिक जीवों में जलबुबुद्सम, तेजस्कायिक जीवों के सूचीकलाप जैसा, वायुकायिक जीवों के पताका जैसा और वनस्पतिकायिक जीवों के नानाविध संस्थान होता है। तदनुसार उसकी निर्वृत्ति समझनी चाहिए। १३. संज्ञानिवृत्ति-आहारादि संज्ञाचतुष्टय निर्वृत्ति चौवीस दण्डकवर्ती जीवों के होती है। १४. लेश्यानिवृत्ति—जिस जीव में जो-जो लेश्याएँ हों उसके उतनी लेश्यानिवृत्ति कहनी चाहिए। १५. दृष्टिनिर्वृत्ति—त्रिविध दृष्टिनिर्वृत्तियों में से जिन जीवों में जितनी दृष्टियाँ पाई जाती हों उनके उतनी दृष्टिनिवृत्ति कहनी चाहिए। १६.-१७. ज्ञान-अज्ञान निवृत्ति—आभिनिबोधिकादि रूप से जो ज्ञान की परिणति होती है उसे ज्ञाननिर्वृत्ति कहते हैं। यों तो एकेन्द्रिय जीवों के सिवाय नारकों से लेकर वैमानिकों तक के सब जीवों में ज्ञाननिर्वृत्ति होती है परन्तु समस्त ज्ञाननिर्वृत्तियां सबको नहीं होती। किसी को एक, किसी को दो, तीन या चार ज्ञान तक होते हैं। अत: जिसे जो ज्ञान हो, उसी की निर्वृत्ति उस जीव के होती है। अज्ञाननिर्वृत्ति भी इसी प्रकार समझ लेनी चाहिए। १८. योगनिर्वृत्ति-त्रिविध योगों में से जिस जीव के जो योग हो, उसी की निवृत्ति होती है। १९. उपयोगनिर्वृत्ति—द्विविध है, जो समस्त संसारी जीवों के होती है।' ॥ उन्नीसवां शतक : आठवाँ उद्देशक समाप्त॥ ००० १. भगवती. प्रमेयचन्द्रिका टीका भाग १३, पृ. ४२५ से ४४७ तक के आधार पर

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