Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 839
________________ ८०६ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ४३. एवं जाव वेमाणियाणं, जस्स जतिविधो जोगा। [४३] इस प्रकार वैमानिकों तक जिसके जितने योग हों, (तदनुसार उतनी योगनिर्वृत्ति कहनी चाहिए।) ४४. कतिविधा णं भंते ! उवयोगनिव्वत्ती पन्नत्ता ? गोयमा ! दुविहा उवयोगनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा—सागारोवयोगनिव्वत्ती, अणागारोवयोगनिव्वत्ती। [४४ प्र.] भगवन् ! उपयोगनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई हैं ? [४४ उ.] गौतम! उपयोगनिर्वृत्ति दो प्रकार की कही गई है, यथा—साकारोपयोग-निर्वृत्ति और अनाकारोपयोग-निर्वृत्ति। ४५. एवं जाव वेमाणियाणं। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० । ॥एगूणवीसइमे सए : अट्ठमो उद्देसओ समत्तो॥१९-८॥ [४५] इस प्रकार उपयोगनिर्वृत्ति (का कथन) वैमानिकों पर्यन्त (करना चाहिए)। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन कर्म, शरीर आदि १८ बोलों की निर्वृत्ति के भेद तथा चौवीस दण्डकों में पाई जाने वाली उस-उस निर्वृत्ति की यथायोग्य प्ररूपणा–प्रस्तुत ४१ सूत्रों (सू. ५ से ४५ तक) में निर्वृत्ति के कुल १९ बोलों (द्वारों) में से प्रथम बोल—जीवनिर्वृत्ति को छोड़ कर शेष निम्नोक्त १८ बोलों की निवृत्ति के भेद तथा चौवीस दण्डकों में पाई जाने वाली उस-उस निर्वृत्ति का संक्षेप में कथन किया गया है। २. कर्मनिवृत्ति—जीव के राग-द्वेषादिरूप अशुभभावों से जो कार्मण वर्गणाएँ ज्ञानावरणीयादि रूप परिणाम को प्राप्त होती हैं, उनका नाम कर्मनिर्वृत्ति है। यह कर्मसम्पादनरूप है और आठ प्रकार की है, जो चौवीस दण्डकों में होती है। ३. शरीरनिर्वृत्ति—विभिन्न शरीरों की निष्पति शरीरनिर्वृत्ति है। नारकों और देवों के वैक्रिय, तैजस और १. अधिक पाठ—उद्देशक की परिसमाप्ति पर अन्य प्रतियों में निम्नोक्त दो द्वार-संग्रहणीगाथाएँ मिलती हैं जीवाणं निव्वत्ती कम्मप्पगडी-सरीर-निव्वत्ती। सव्विंदिय-निव्वत्ती भासा यमणे कसाया य॥१॥ वण्णे गंधे रसे फासे संठाणविही यहोइ बोद्धव्यो। लेसा दिट्ठी णाणे उवओगे चेव जोगे थ॥ २॥ अर्थ-१. जीव, २. कर्म प्रकृति, ३. शरीर, ४. सर्वेन्द्रिय, ५. भाषा, ६. मन, ७. कषाय, ८. वर्ण, ९. गंध, १०. रस, ११.. स्पर्श, १२. संस्थान, १३. संज्ञा, १४. लेश्या, १५. दृष्टि, १६. ज्ञान, १७. अज्ञान, १८. उपयोग और १९. योग; इन सबकी निवृत्ति का कथन इस उद्देशक में किया गया है।

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