Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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उन्नीसवाँ शतक : उद्देशक-८
[ २१ उ.] गौतम! वर्णनिर्वृत्ति पांच प्रकार की कही गई है, यथा— कृष्णवर्णनिर्वृत्ति, यावत् शुक्लवर्णनिर्वृत्ति ।
२२. एवं निरवसेसं जाव वेमाणियाणं ।
[२२] इस प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों पर्यन्त समग्र वर्णनिर्वृत्ति कहनी चाहिए ।
२३. एवं गंधनिव्वत्ती दुविहा जाव वेमाणियाणं ।
[२३] इसी प्रकार दो प्रकार की गन्ध-निर्वृत्ति वैमानिकों तक कहनी चाहिए।
२४. रसनिव्वत्ती पंचविहा जाव वेमाणियाणं ।
[२४] इसी तरह पांच प्रकार की रस-निर्वृत्ति, वैमानिकों तक कहनी चाहिए।
२५. फासनिव्वत्ति अट्ठविहा जाव वेमाणियाणं ।
[२५] आठ प्रकार की स्पर्श - निर्वृत्ति भी वैमानिकों पर्यन्त कहनी चाहिए।
२६. कतिविधा णं भंते! संठाणनिव्वत्ती पन्नत्ता ?
गोयम्मा ! छव्विहा संठाणनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा— समचउरंससंठाणनिव्वत्ती जाव हुंडठाणनिव्वत्ति ।
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[ २६ प्र.] भगवन्! संस्थान - निर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ?
[ २६ उ. ] गौतम ! संस्थान- निर्वृत्ति छह प्रकार की कही गई है, यथा— समचतुरस्त्रसंस्थान - निर्वृत्ति यावत् हुण्डकसंस्थान - निर्वृत्ति |
२७. नेरतियाणं पुच्छा।
गोयमा ! एगा हुंडठाणनिव्वत्ती पन्नत्ता ।
[ २७ प्र.] भगवन्! नैरयिकों के संस्थान-निर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ?
[ २७ उ.] गौतम! उनके एकमात्र हुण्डकसंस्थाननिर्वृत्ति कही गई है।
२८. असुरकुमाराणं पुच्छा ।
गोयमा ! एगा समचउरंससंठाणनिव्वत्ती पन्नत्ता ।
[ २८ प्र.] भगवन्! असुरकुमारों के कितने प्रकार की संस्थाननिर्वृत्ति कही गई है ?
[ २८ उ.] गौतम! उनके एकमात्र समचतुरस्रसंस्थान - निर्वृत्ति कही गई है।
२९. एवं जाव थणियकुमाराणं ।
[२९] इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त कहना चाहिए।
३०. पुढविकाइयाणं पुच्छा ।