Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कर्थित तैजसशरीर के भेदों के समान यहाँ भी जानना चाहिए, यावत्
__ [४ प्र.] भगवन् ! सर्वार्थसिद्धअणुत्तरौपपातिकवैमानिकदेव-पंचेन्द्रियजीवनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है?
[४ उ.] गौतम! यह निर्वृत्ति दो प्रकार की कही गई है, यथा—पर्याप्तसर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिकवैमानिक-देवपंचेन्द्रियजीवनिर्वृत्ति और अपर्याप्तसर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपातिकवैमानिक-देवपंचेन्द्रियजीवनिर्वृत्ति।
विवेचन—निर्वृत्ति और जीवनिर्वृत्ति : स्वरूप और भेद-प्रभेद–निर्वृत्ति का अर्थ है—निष्पत्ति, रचना, बनावट की पूर्णता। जीवों की एकेन्द्रियादि पर्याय रूप से निष्पत्ति या पूर्ण रचना होना जीवनिर्वृत्ति है। एकेन्द्रिय नामकर्म के उदय से पृथ्वीकायिकादि रूप से जीव की निर्वृत्ति होना एकेन्द्रिय-जीवनिर्वृत्ति है। शेष स्पष्ट है। कर्म-शरीर-इन्द्रिय आदि १८ बोलों की निवृत्ति के भेदसहित चौवीस दण्डकों में निरूपण
५. कतिविधा णं भंते ! कम्मनिव्वत्ती पन्नत्ता ?
गोयमा ! अट्ठविहा कम्मनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा—नाणावरणिजकम्मनिव्वत्ती, जाव अंतराइयकम्मनिव्वत्ती।
[५ प्र.] भगवन् ! कर्मनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ?
[५ उ.] गौतम! कर्मनिर्वृत्ति आठ प्रकार की कही गई है, यथा—ज्ञानावरणीयकर्मनिर्वृत्ति यावत् अन्तरायकर्मनिर्वृत्ति।
६. नेरतियाणं भंते ! कतिविधा कम्मनिव्वत्ती पन्नत्ता ?
गोयमा ! अट्ठविहा कम्मनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा–नाणावरणिज्जकम्मनिव्वत्ती, जाव अंतराइयकम्मनिव्वत्ती।
[६ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों की कितने प्रकार की कर्मनिवृत्ति कही गई है ?
[६ उ.] गौतम! उनकी आठ प्रकार की कर्मनिर्वृत्ति कही गई है, यथा—ज्ञानावरणीयकर्मनिर्वृत्ति, यावत् अन्तरायकर्मनिर्वृत्ति।
७. एवं जाव वेमाणियाणं। [७] इसी प्रकार वैमानिकों तक की कर्मनिवृत्ति के विषय में जान लेना चाहिए। ८. कतिविधा णं भंते ! सरीरनिव्वत्ती पन्नत्ता? गोयमा ! पंचविधा सरीरनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा–ओरालियसरीरनिव्वत्ती जाव कम्मग
१. भगवती. हिन्दीविवेचन (पं. घेवरचन्दजी) भा.६, पृ. २८१२