Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अठारहवाँ शतक : उद्देशक-७
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कठिन शब्दार्थ—जक्खाएसेण—यक्ष के आवेश से।आइडे—आविष्ट—अधिष्ठित।आहच्चकदाचित् या कभी-कभी। असावज्जाओ—असावद्य—निरवद्य (पाप-दोष-रहित) । अपरोवघातियाओअपरोपघातिक-दूसरों को आघात नहीं पहुँचाने वाली। असच्चामोसं-असत्यामृषा—जो न तो सत्य हो, न मृषा हो, ऐसी आदेशादिवाचक व्यवहारभाषा। उपधि एवं परिग्रह : प्रकारत्रय तथा नैरयिकादि में उपधि एवं परिग्रह की यथार्थ प्ररूपणा
३. कतिविधे णं भंते ! उवही पन्नत्ते ? गोयमा ! तिविहे उवही पन्नत्ते, तं जहा—कम्मोवही सरीरोवही बाहिरभंडमत्तोवगरणोवही। [३ प्र.] भगवन् ! उपधि कितने प्रकार की कही गई है?
[३ उ.] गौतम! उपधि तीन प्रकार की कही गई है। यथा—(१) कर्मोपधि, (२) शरीरोपधि और (३) बाह्यभाण्डमात्रोपकरणउपधि।
४. नेरइयाणं भंते ! • पुच्छा। गोयमा ! दुविहे उवही पन्नत्ते, तं जहा—कम्मोवही य सरीरोवही य। [४ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के कितने प्रकार की उपधि होती है ?
[४ उ.] गौतम! उनके दो प्रकार की उपधि कही गई है वह इस प्रकार—(१) कर्मोपधि और (२) शरीरोपधि।
५. सेसाणं तिविहा उवही एगिंदियवज्जाणं जाव वेमाणियाणं।
[५] एकेन्द्रिय जीवों को छोड़कर वैमानिक तक शेष सभी जीवों के (पूर्वोक्त) तीन प्रकार की उपधि होती है।
६. एगिंदियाणं दुविहे, तं जहा—कम्मोवही य सरीरोवही य। [६] एकेन्द्रिय जीवों के दो प्रकार की उपधि होती है यथा—कर्मोपधि और शरीरोपधि । ७. कतिविधे णं भंते ! उवही पन्नते। गोयमा ! तिविहे उवही पन्नत्ते, तं जहा–सच्चित्ते अचित्ते मीसए। [७ प्र.] भगवन् ! (प्रकारान्तर से) उपधि कितने प्रकार की कही गई है ? [७ उ.] गौतम! (प्रकारान्तर से) उपधि तीन प्रकार की कही गई है यथा—सचित्त, अचित्त और मिश्र। ८. एवं नेरइयाण वि।
१. भगवती, विवेचन (पं. घेवरचन्दजी) भा. ६, पृ. २७१४