Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 772
________________ अट्ठमो उद्देसओ : 'अणगारे' आठवाँ उद्देशक : ‘अनगार' भावितात्मा अनगार के पैर के नीचे दबे कुर्कुटादि के कारण ईर्यापथिक क्रिया का सकारण निरूपण १. रायगिहे जाव एवं वयासी[१] राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर से यावत् इस प्रकार पूछा २.[१]अणगारस्स णं भंते ! भावियप्पणो पुरओ दुहओ जुगमायाए पेहाए पेहाए रीयं रीयमाणस्स पायस्स अहे कुक्कुडपोते वा वट्टापोते वा कुलिंगच्छाए वा परियावज्जेज्जा, तस्स णं भंते ! किं इरियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ ? - गोयमा ! अणगारस्सणं भावियप्पणो जाव तस्स णं इरियावहिया किरिया कज्जति, नो संपराइया किरिया कज्जति। [२-१ प्र.] भगवन् ! सम्मुख और दोनों ओर युगमात्र (गाड़ी के जुए प्रमाण) भूमि को देख-देख कर ईर्यापूर्वक गमन करते हुए भावितात्मा अनगार के पैर के नीचे मुर्गी का बच्चा, बतख (वर्तक) का बच्चा अथवा कुलिंगच्छाय (चींटी जैसा सूक्ष्म जीव) आ (या दब) कर मर जाए तो, भगवन् ! उक्त अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है या साम्परायिकी क्रिया लगती है ? [२-१ उ.] गौतम ! यावत् उस (पूर्वकथित) भावितात्मा अनगार को, यावत् ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है, साम्परायिकी क्रिया नहीं लगती। [२] से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ ? जहा सत्तमसए सत्तुद्देसए ( स. ७ उ. ७ सु. १ (२)) जाव अट्ठो निक्खित्तो। सेवं भंते ! ० जाव विहरति। [२-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि पूर्वोक्त भावितात्मा अनगार को यावत् साम्परायिकी क्रिया नहीं लगती? [२-२ उ.] गौतम! सातवें शतक के सप्तम उद्देशक ( के सू. १-२) के अनुसार जानना चाहिए। यावत् अर्थ का निक्षेप (निगमन) करना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840