Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अठारहवाँ शतक : उद्देशक-९
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चौवीस दण्डकों में भव्य-द्रव्य-नैरयिकादि की स्थिति का निरूपण
१०. भवियदव्वनेरइयस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। [१० प्र.] भगवन् ! भव्य-द्रव्य-नैरयिक की स्थिति कितने काल की कही गई है?
[१० उ.] गौतम! उसकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट (अधिक से अधिक) पूर्वकोटि वर्ष (करोड़ पूर्व वर्ष) की कही गई है।
११. भवियदव्वअसुरकुमारस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई। [११ प्र.] भगवन् ! भव्य-द्रव्य-असुरकुमार की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [११ उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की कही गई है। १२. एवं जाव थणियकुमारस्स। [१२] इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना चाहिए। १३. भवियदव्वपुढविकाइयस्स णं पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सातिरेगाइं दो सागरोवमाई। [१३ प्र.] भगवन् ! भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[१३ उ.] गौतम! ( उसकी स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट कुछ अधिक दो सागरोपम की कही गई है।
१४. एवं आउकाइयस्स वि। [१४] इसी प्रकार अप्कायिक की स्थिति (के विषय में कहना चाहिए)। १५. तेउ-वाऊ जहा नेरइयस्स। [१५] भव्य-द्रव्य-अग्निकायिक एवं भव्य-द्रव्य-वायुकायिक की स्थिति नैरयिक के समान है। १६. वणस्सइकाइयस्स जहा पुढविकाइयस्स। [१६] वनस्पतिकायिक की स्थिति पृथ्वीकायिक के समान समझनी चाहिए। १७. बेइंदिय-तेइंदिय-चतुरिंदियस्स जहा नेरइयस्स। [१७] (भव्य-द्रव्य-) द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय की स्थिति भी नैरयिक के समान जाननी चाहिये। १८. पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।