Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 823
________________ पंचमो उद्देसओ : 'चरम' पंचम उद्देशक : 'चरम' (परम - वेदनादि ) चरम और परम आधार पर चौवीस दण्डकों में महाकर्मत्व- अल्पकर्मत्व आदि का निरूपण १. अत्थि णं भंते ! चरमा वि नेरतिया, परमा वि नेरतिया ? हंता, अत्थि । [१ प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिक चरम (अल्पायुष्क) भी हैं और परम (अधिक आयुष्य वाले) भी हैं ? [१ उ. ] हाँ, गौतम ! (वे चरम भी हैं, परम भी) हैं २. [ १ ] से नूणं भंते! चरमेहिंतो नेरइएहिंतो परमा नेरतिया महाकम्मतरा चेव, महाकिरियतरा चेव, महस्सवतरा चेव, महावेयणतरा चेव, परमेहिंतो वा नेरइएहिंतो चरमा नेरतिया अप्पकम्मतरा चेव, अप्पकिरियतरा चेव, अप्पस्सवतरा चेव, अप्पवेयणतरा चेव ? हंता गोयमा ! चरमेहिंतो नेरइएहिंतो परमा जाव महावेयणतरा चेव; परमेहिंतो वा नेरइएहिंतो चरमा नेरइया जाव अप्पवेयणतरा चेव । [२-१ प्र.] भगवन् ! क्या चरम नैरयिकों की अपेक्षा परम नैरयिक महाकर्म वाले, महाक्रिया वाले, महास्रव वाले और महावेदना वाले हैं ? तथा परम नैरयिकों की अपेक्षा चरम नैरयिक अल्पकर्म, अल्पक्रिया, अल्पास्रव और अल्पवेदना वाले हैं ? [२-१ उ. ] हाँ, गौतम ! चरम नैरयिकों की अपेक्षा परम नैरयिक यावत् महावेदना वाले हैं और परम नैरयिकों की अपेक्षा चरम नैरयिक यावत् अल्पवेदना वाले हैं। [ २ ] से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ जाव अप्पवेयणतरा चेव ? गोयमा ! ठितिं पडुच्च, से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जाव अप्पवेयणतरा चेव । [२-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि परम नैरयिकों की अपेक्षा चरम नैरयिक यावत् अल्पवेदना वाले हैं ? [२-२ उ.] गौतम ! स्थिति ( आयुष्य) की अपेक्षा से (ऐसा है ।) इसी कारण, हे गौतम! ऐसा कहा यावत्— 'अल्पवेदना वाले हैं।' जाता है ३. अत्थि णं भंते ! चरमा वि असुरकुमारा, परमा वि असुरकुमारा ? एवं चेव, नवरं विवरीयं भाणियव्वं परमा अप्पकम्मा चरमा महाकम्मा, सेसं तं चेव । जाव थणियकुमारा ताव एमेव ।

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