Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 818
________________ चउत्थो उद्देसओ : 'महासवा' चतुर्थ उद्देशक : 'महास्रव' नैरयिकों में महात्रवादि पदों की प्ररूपणा १. सिय भंते ! नेरइया महस्सवा महाकिरिया महावेयणा महानिज्जरा ? णो इणढे-समढे १। [१ प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिक जीव महास्रव, महाक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले होते हैं ? [१ उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ (यथार्थ) नहीं है। २. सियं भंते ! नेरइया महस्सवा महाकिरिया महावेदणा अप्पनिज्जरा ? हंता, सिया २। [२ प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिक जीव महास्रव, महाक्रिया, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? [२ उ.] हाँ, गौतम! ऐसे होते हैं। ३. सिय भंते ! नेरइया महस्सवा महाकिरिया अप्पवेयणा महानिज्जरा ? णो इणढे समढे ३। [३ प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिक जीव महास्रव, महाक्रिया, अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले होते हैं ? [३ उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। ४. सिय भंते ! नेरइया महस्सवा महाकिरिया अप्पवेदणा अप्पनिजरा ? णो इणठे समढे ४। [४ प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिक महास्रव, महाक्रिया, अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? [४ उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। ५. सिय भंते ! नेरइया महस्सवा अप्पकिरिया महावेदणा महानिज्जरा ? गोयमा ! णो इणढे समढे ५।। [५ प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिक, महास्रव, अल्पक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले होते हैं ? १. अधिक पाठ-उद्देशक के प्रारम्भ में किसी प्रति में इस प्रकार का पाठ है –'तेण कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वयासी'

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