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________________ अठारहवाँ शतक : उद्देशक-९ ७४९ चौवीस दण्डकों में भव्य-द्रव्य-नैरयिकादि की स्थिति का निरूपण १०. भवियदव्वनेरइयस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। [१० प्र.] भगवन् ! भव्य-द्रव्य-नैरयिक की स्थिति कितने काल की कही गई है? [१० उ.] गौतम! उसकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट (अधिक से अधिक) पूर्वकोटि वर्ष (करोड़ पूर्व वर्ष) की कही गई है। ११. भवियदव्वअसुरकुमारस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई। [११ प्र.] भगवन् ! भव्य-द्रव्य-असुरकुमार की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [११ उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की कही गई है। १२. एवं जाव थणियकुमारस्स। [१२] इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना चाहिए। १३. भवियदव्वपुढविकाइयस्स णं पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सातिरेगाइं दो सागरोवमाई। [१३ प्र.] भगवन् ! भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [१३ उ.] गौतम! ( उसकी स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट कुछ अधिक दो सागरोपम की कही गई है। १४. एवं आउकाइयस्स वि। [१४] इसी प्रकार अप्कायिक की स्थिति (के विषय में कहना चाहिए)। १५. तेउ-वाऊ जहा नेरइयस्स। [१५] भव्य-द्रव्य-अग्निकायिक एवं भव्य-द्रव्य-वायुकायिक की स्थिति नैरयिक के समान है। १६. वणस्सइकाइयस्स जहा पुढविकाइयस्स। [१६] वनस्पतिकायिक की स्थिति पृथ्वीकायिक के समान समझनी चाहिए। १७. बेइंदिय-तेइंदिय-चतुरिंदियस्स जहा नेरइयस्स। [१७] (भव्य-द्रव्य-) द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय की स्थिति भी नैरयिक के समान जाननी चाहिये। १८. पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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