Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 778
________________ अठारहवाँ शतक : उद्देशक-८ ७४५ इत्यादि प्रश्न। [२० उ.] जिस प्रकार छद्मस्थ मनुष्य के विषय में कथन किया है, उसी प्रकार आधोऽवधिक मनुष्य के विषय में समझना चाहिए। इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक कहना चाहिए। २१. [१] परमाहोहिए णं भंते ! मणूसे परमाणुपोग्गलं जं समयं जाणइ तं समयं पासति, जं समयं पासति तं समयं जाणति? णो तिणढे समठें। [२१-१ प्र.] भगवन् ! क्या परमावधिज्ञानी मनुष्य परमाणु-पुद्गल को जिस समय जानता है, उसी समय देखता है? और जिस समय देखता है, उसी समय जानता है। [२१-१ उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है। [२] से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ—परमाहोहिए णं मणूसे परमाणुपोग्गलं जं समयं जाणइ नो तं समयं पासइ, जं समयं पासइ नो तं समयं जाणइ ? गोयमा ! सागारे से नाणे भवति, अणागारे से दंसणे भवति, से तेणढेणं जाव नो तं समयं जाणइ। . [२१-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि परमावधिज्ञानी मनुष्य परमाणुपुद्गल को जिस समय जानता है, उसी समय देखता नहीं है और जिस समय देखता है, उस समय जानता नहीं है ? [२१-२ उ.] गौतम! परमावधिज्ञानी का ज्ञान साकार (विशेष-ग्राहक) होता है और दर्शन अनाकार (सामान्य-ग्राहक) होता है। इसलिए ऐसा कहा गया है कि यावत् जिस समय देखता है उस समय जानता नहीं। २२. एवं जाव अणंतपएसियं। [२२] इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक कहना चाहिए। २३. केवली णं भंते ! मणूसे परमाणुपोग्गलं० ! जहा परमाहोहिए तहा केवली वि जाव अणंतपएसियं। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०। ॥अट्ठारसमे सए : अट्ठमो उद्देसओ समत्तो॥१८-८॥ [२३ प्र.] भगवन् ! क्या केवलज्ञानी जिस समय परमाणुपुद्गल को जानता है, उस समय देखता है ? इत्यादि प्रश्न। [२३ उ.] गौतम! जिस प्रकार परमावधिज्ञानी के विषय में कहा है, उसी प्रकार केवलज्ञानी के लिए भी कहना चाहिए। और इसी प्रकार (का कथन) यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक (समझना चाहिए।) 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं।

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